Monday, 29 June 2020

।।चन्द्र स्त्रोत्रम् ।।chandra stotram

     ॥ चन्द्रस्तोत्रम् ॥

चन्द्रस्य शृणु नामानि शुभदानि महीपते ।
यानि श्रुत्वा नरो दुःखान्मुच्यते नात्र संशयः ॥ १ ॥

सुधाकरश्च सोमश्च ग्लौरब्जः कुमुदप्रियः ।
लोकप्रियः शुभ्रभानुश्चन्द्रमा रोहिणीपतिः ॥ २ ॥

शशी हिमकरो राजा द्विजराजो निशाकरः ।
आत्रेय इन्दु शीतांशुरोषधीशः कलानिधिः ॥ ३ ॥

जैवातृको रमाभ्राता क्षीरोदार्णवसम्भवः ।
नक्षत्रनायकः शम्भुशिरश्चूडामणिविभुः ॥ ४ ॥

तापहर्ता नभोदीपो नामान्येतानि यः पठेत् ।
प्रत्यहं भक्तिसंयुक्तस्तस्य पीडा विनश्यति ॥ ५ ॥

तद्दिने च पठेद्यस्तु लभेत् सर्वं समीहितम् ।
ग्रहादीनां य सर्वेषां भवेच्चन्द्रबलं सदा ॥ ६ ॥

                            ॥ इति ॥ 

Thursday, 18 June 2020

सूर्यग्रहण मे क्या करे,क्या न?।surya grahan 21june ,2020।क्या है कंकणाकृ...


सूर्यग्रहण मे करे ये कार्य

  आइए जानते हैं आने वाले सूर्य ग्रहण के विषय में ग्रहण में
किन मंत्रों स्तोत्रो की उपासना करनी चाहिए?  

मंत्र दीक्षा लेनी चाहिए ?

  कैसे जल में स्नान करना चाहिए ?

दान करना चाहिए?

तो चलिए शुरू करते हैं इस ग्रहण के बारे में।यह सूर्य ग्रहण मिथुन राशि में होने वाला कंकणाकृती ग्रहण है और यह ग्रहण भारत में दिखाई देगा। इसका का स्पर्श काल और पूर्ण मोक्ष काल दोनों ही भारत में दिखाई देंगे। इसके बाद भारत में कंकणाकृती ग्रहण 2031 में लगभग 11 वर्षों

बाद में दिखाई देगा ।
सूर्य ग्रहण का समय
दिनांक : 21/06/2020
10/03Am to 03/28 pm
स्पर्श :10/03
ग्रहण मध्यकाल : 11/41
ग्रहण मोक्ष : 01/32
पूर्ण काल : 03/28

एक अण्डाकार कक्षा में पृथ्वी की परिक्रमा करना पृथ्वी से चंद्रमा को देखते हुए, इसकी कक्षा लगभग 13% छोटी और बड़ी हो जाती है।  जब चंद्रमा पृथ्वी के करीब होता है, तो चंद्रमा की परिक्रमा सूर्य की कक्षा से बड़ी दिखाई देगी।  अगर उस समय सूर्य ग्रहण होता है, तो यह खग्रास होगा। क्योंकि चंद्रमा की परिक्रमा सूर्य की परिक्रमा को पूरी तरह से कवर कर देगी। जब चंद्रमा, जो स्पष्ट रूप से सूर्य से छोटा होता है, सूर्य की कक्षा के केंद्र में होता है, सूर्य पूर्ण सूर्य की कक्षा पूर्ण को कवर किए बिना चंद्रमा की परिधि के चारों ओर एक कंगन के रूप में दिखाई देता है,  इसलिए तथाकथित "कंगन के आकार का" सूर्य ग्रहण कंकणाकृती ग्रहण कहलाता है।
< स्पर्शकाले -स्नान
   < मध्यकाले- होम - देवपूजा - श्राद्ध - मंत्रजाप
    <मोक्षकाले- दान यह सर्वोत्तम सोपान है ग्रहण का

ग्रहण में करने योग्य कार्य :
ग्रहण लगने के 12 घंटे पहले बैठ जाते हैं अर्थात सूतक लग जाता है, अत:भगवत भजन व जाप सिद्धि करना चाहिए।ग्रहण काल में मंत्र सिद्धि,  ,स्तोत्र पाठ   तीर्थ-स्नान ,दान, जप, पूजा-पाठ, भजन ,कीर्तन ,गुरु से दीक्षा प्राप्ती इत्यादि कार्य किये जा सकते है

 < स्पर्शकाले -स्नान 

 < मध्यकाले- होम - देवपूजा - श्राद्ध - मंत्रजाप 

  <मोक्षकाले- दान यह सर्वोत्तम सोपान है ग्रहण का
मन्त्र पाठ,स्त्रोत -पाठ मे यदी देखा जाये तो
🕉️ गं गणपतये नम :।।
🕉️ नमो भगवते वासुदेवाय ।।

एवं जिन ग्रहो कि पीडा है, उनके मूल-मन्त्र ,वैदिक-मन्त्रोका जप तथा नव -ग्रहो‌ के स्त्रोतो का पाठ एवं गणपती अथर्वशीर्ष ,देवी-अथर्वशीर्ष,लक्ष्मी जी कि प्राप्ती के लिएश्री-सूक्त का पाठ कर सकते है।

ग्रहण में करने योग्य कार्य :
ग्रहण लगने के 12 घंटे पहले बैठ जाते हैं,अर्थात सूतक लग जाता है, अत:भगवत भजन व जाप सिद्धि करना चाहिए।
ग्रहण काल में मंत्र सिद्धि,  ,स्तोत्र पाठ   तीर्थ-स्नान ,दान,
जप, पूजा-पाठ, भजन ,कीर्तन ,गुरु से दीक्षा प्राप्ती इत्यादि कार्य किये जा सकते है

* ग्रहण काल में क्या न करें :

ग्रहण काल में शयन, मूर्ति स्पर्श व अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। ग्रहण के समय सूर्य को सीधा ना देखना अंधता जैसी शिकायत हो सकती हैं।  ग्रहण काल ​​में सोना, मल-मूत्र, भोजन करना, पानी पीना यह सब कार्य वर्जित है। ग्रहण काल ​​में पका हुआ भोजन कटी हुई सब्जी ग्रहण नहीं करना चाहिए।  दूषित हो जाता है।हमारे ऋषि-मुनियों ने सूर्य ग्रहण लगने के समय
भोजन के लिए मना किया है, क्योंकि उनकी मान्यता थी कि ग्रहण के समय में कीटाणु बहुलता से फैल जाते हैं। खाद्य वस्तु,जल आदि में सूक्ष्म जीवाणु एकत्रित होकर उसे दूषित कर देते हैं। इसलिए ऋषियों ने पात्रों मे कुश डालने को कहा है, ताकि सब कीटाणु कुश में एकत्रित हो जाएं और उन्हें ग्रहण के बादफेंका जा सके। पात्रों में अग्नि डालकर उन्हें पवित्र बनाया जाता है ताकि कीटाणु मर जाएं।ग्रहण के बाद स्नान करने का विधान इसलिए बनाया गया ताकि स्नान के दौरान शरीर के
शअंदर ऊष्मा का प्रवाह बढ़े, भीतर-बाहर के कीटाणु नष्ट हो जाएं और धुल कर बह जाएं।
*  किस-किस को छूट रहती है :

बालक, वृद्ध, मरीज व गर्भवती महिलाएं अन्न ग्रहण कर सकती हैं।
यदि हो सके तो ग्रहण के 2 घंटे पहले से भोजन का त्याग कर दें।
* कौन ग्रहण न देखें :

गर्भवती महिलाएं ग्रहण को न देखें एवं अशुभ फल वाले
भी ग्रहण को न देखें।
* ग्रहण के बाद क्या करें :

ग्रहण समाप्ति के बाद किसी पवित्र नदी में स्नान करें।
यदि पवित्र नदी में न जा सकें तो किसी, तालाब, बावड़ी, कुआं या जलाशय में स्नान करें। यह भी न हो सके तो घर में स्नान के जल में किसी तीर्थ का जल मिलाकर स्नान करें।स्नान के बाद कंबल या काली तिल या अन्नदान करें। हो सके तो स्वर्ण व अन्य वस्तुओं का भी दान करें।

*  विशेष :

अशुभ फल वाले को अनिष्ट की शांति के
लिए हवन, जाप, गौदान व वस्त्रदान करना चाहिए।

अत: यह ग्रहण जहां दिखाई दे,वहीं पर ग्रहण के नियम पालन करें।ग्रहण में पालन करने के नियमों का पता होना चाहिएकि क्या ग्रहण अपनी जगह पर दिखाई देगा।  उस नियम कापालन करें जहां ग्रहण दिखाई देता है। जो कोई भी ग्रहण के दौरान पूजा करता है और भिक्षा देता है,उसे ग्रहण की बुरी भावना कभी नहीं होती है।ग्रहण में की गई पूजा कई फल देती है। 
भोजन: फलों को ग्रहण की शुरुआत से ग्रहण के स्पर्श तक खाया जाना चाहिए।  पका हुआ भोजन न लें। वेद के दौरान पके हुए भोजन का प्रसाद न लेकर सकारिया, फल आदि ले सकते हैं। क्योंकि ग्रहण में सूतक है।देवसेवा, देवप्रदर्शन, मंदिरों में मूर्तियों की पूजा आदि;  पुण्य काल में कुछ भी खाने या पीने के लिए नहीं। केवल मंत्रों का जाप करने के लिए। पुण्य काल शुरू हो जाता है, इसलिए गणेशजी का स्मरण करें, दीप जलाएं, मन्त्र पाठ करें। पुण्य काल के अंत तक पूजा करें।मोक्ष के बाद स्नान करके ही भोजन किया जा सकता है। "ग्रहण वेद" शुरू होने से पहले: ग्रहण के समय, आवश्यक वस्तुओं जैसे कि आसन, दीप, माला, पाठ्य पुस्तकेंवेद शुरू होने से पहले अलग रखनी चाहिए,क्योंकि तब पूजा का स्थान विचलित नहीं होना चाहिए।कुश (दर्भ -  डाभ)  स्थापित करे।अपने मन में संकल्प करें कि आप क्या दान करना चाहते हैं? दान ग्रहण में नहीं किया जाता है,यह केवल ग्रहण के लिए किया जाता है। विद्यादान, अन्नदान, गौदान आदि गुरु की आज्ञा केअनुसार दान करना। 

यह ग्रहण मेष, सिंह, वृश्चिक और मीन राशि
के लिए शुभ है।  दूसरे के लिए अशुभ है।

           

                                                            जुगल व्यास

Sunday, 14 June 2020

।।सूर्य स्त्रोत्रम्।। surya stotram।।

                || सूर्यस्तोत्रम् ॥

नवग्रहाणां   सर्वेषां सूर्यादीनां  पृथक्  पृथक् ।
पीडा च दुःसहा  राजञ्जायते सततं नृणाम् ॥ १ ॥

पीडानाशाय  राजेन्द्र नामानि  शृणु भास्वतः ।
सूर्यादीनां च सर्वेषां पीडा नश्यति शृण्वतः ॥ २ ॥

आदित्यः सविता सूर्यः पूषाऽर्कः शीघ्रगो रविः ।
भगस्त्वष्टाऽर्यमा हंसो हेलिस्तेजोनिधिहरिः ॥ ३ ॥

दिननाथो दिनकरः सप्तसप्तिः प्रभाकरः ।
विभावसुर्वेदकर्ता वेदाङ्गो वेदवाहनः ॥ ४ ॥

हरिदश्वः कालवक्रः कर्मसाक्षी जगत्पतिः ।
पद्मिनीबोधको भानुर्भास्करः करुणाकरः ॥ ५ ॥

द्वादशात्मा विश्वकर्मा लोहिताङ्गस्तमोनुदः ।
जगन्नाथोऽरविन्दाक्षः कालात्मा कश्यपात्मजः ॥ ६ ॥

भूताश्रयो ग्रहपतिः सर्वलोकनमस्कृताः ।
जपाकुसुमसंकाशो भास्वानदितिनन्दनः ॥ ७ ॥

ध्वान्तेभसिंहः सर्वात्मा लोकनेत्रो विकर्तनः ।
मार्तण्डो मिहिरः सूरस्तपनो लोकतापनः ॥ ८ ॥

जगत्कर्ता जगत्साक्षी शनैश्चरपिता जयः । 
सहस्ररश्मिस्तरणिर्भगवान्भक्तवत्सलः ॥ ९ ॥

विवस्वानादिदेवश्च देवदेवो दिवाकरः ।
धन्वन्तरिाधिहर्ता दद्रुकुष्ठविनाशनः ॥ १० ॥

चराचरात्मा मैत्रेयोऽमितो विष्णुर्विकर्तनः ।
दुःखशोकापहर्ता च कमलाकर आत्मभूः ॥ ११ ॥

नारायणो महादेवो रुद्रः पुरुष ईश्वरः ।
जीवात्मा परमात्मा च सूक्ष्मात्मा सर्वतोमुखः ॥ १२ ॥

इन्द्रोऽनलो   यमश्चैव   नैर्ऋतो  वरुणोऽनिलः ।
श्रीद ईशान इन्दुश्च भौमः सौम्यो गुरुः कविः ॥ १३ ॥

शौरिविधुन्तुदः केतुः कालः कालात्मको विभुः ।
सर्वदेवमयो देवः कृष्णः कामप्रदायकः ॥ १४ ॥

य एतैर्नामभिर्मयों भक्त्या स्तौति दिवाकरम्
सर्वपापविनिर्मुक्तः सर्वरोगविवर्जितः ॥ १५ ॥

पुत्रवान्धनवान् श्रीमान् जायते स न संशयः ।
रविवारे पठेद्यस्तु नामान्येतानि भास्वतः ॥ १६ ॥

पीडाशान्तिर्भवेत्तस्य ग्रहाणां च विशेषतः । 
सद्यः सुखमवाप्नोति चायुर्दीर्घ च नीरुजम् ॥ १७ ॥ 

Wednesday, 10 June 2020

क्या है अजपाजप ?

अजपाजप '

मानव - शरीर अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और दुर्लभ है । यदि शास्त्रके अनुसार इसका उपयोग किया जाय तो मनुष्य ब्रह्मको भी प्राप्त कर सकता है । इसके लिये शास्त्रोंमें बहुत - से साधन बतलाये गये हैं । उनमें सबसे सुगम साधन है — ' अजपाजप ' । इस साधनसे पता चलता है कि जीवपर भगवान्की कितनी असीम अनुकम्पा है । अजपाजपका संकल्प कर लेनेपर चौबीस घंटोंमें एक क्षण भी व्यर्थ नहीं हो पाता – चाहे हम जागते हों , स्वप्नमें हों या सुषुप्तिमें हों , प्रत्येक स्थितिमें ' हंसः'२ का जप श्वास क्रियाद्वारा अनायास होता ही रहता है । संकल्प कर देनेसे यह जप मनुष्यद्वारा किया हुआ माना जाता है ।

( क ) किये हुए अजपाजपके समर्पणका संकल्प -
' ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः , अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे .

भरतखण्डे ... भारतवर्षे .... स्थाने .... नामसंवत्सरे .... ऋतौ ... मासे .... पक्षे .... तिथौ .... दिने प्रातःकाले .... गोत्रः , शर्मा ( वर्मा गुप्तः )अहं स्तनसूर्योदयादारभ्य अद्यतनसूर्योदयपर्यन्त श्वासक्रियया भगवता कारितं ' अजपागायत्रीजपकर्म ' भगवते समर्पये । ॐ तत्सत् श्रीब्रह्मार्पणमस्तु ।

( ख ) आज किये जानेवाले अजपाजपका संकल्प - किये गये अजपाजपको भगवान्को अर्पित कर आज सूर्योदयसे लेकर कल सूर्योदयतक होनेवाले अजपाजपका संकल्प करे — ' ॐ विष्णुः ' से प्रारम्भ कर .... ' अहं ' तक बोलनेके बाद आगे कहे - अद्य सूर्योदयादारभ्य श्वस्तनसूर्योदयपर्यन्तं षट्शताधिकैकविंशतिसहस्र ( २१६०० ) संख्याकोच्छ्वासनिःश्वासाभ्यां ( हंसं सोहंरूपाभ्यां गणेशब्रह्मविष्णुमहेशजीवात्मपरमात्मगुरुप्रीत्यर्थमजपागायत्रीजपं करिष्ये । 

आइये जाने पंचांग के बारे मे | क्या है पंचांग ?

// अथ पंचांग विचार प्रकरण //
मुहुर्त का विचार करते समय हमें पंचांग की आवश्यकता होती है पंचांग अर्थात् पांच अंगों का समूह जो इस प्रकार हैं |
१ तिथि
२ वार
३ नक्षत्र
४ योग
५ करण
• अब हम इन पांच अंगों के विषय में विस्तार पूर्वक जानेंगे |

(१) तिथि


* तिथि अर्थात सूर्य और चंद्र के बीच की दूरी दर्शाने वाली संज्ञा
         || पक्षतिथि ज्ञान ||
शुक्ल कृष्णावुभौ पक्षौ देव पित्रे च कर्मणि |
प्रतिपच्च द्वितीया च तृतीया तदनंतरम् ||
चतुर्थी पंचमी षष्ठी सप्तमी चाष्टमी तथा |
नवमी दशमी चैवैकादशी द्वादशी ततः ||
त्रयोदशी ततोज्ञेया ततः प्रोक्ता चतुर्दशी |
पौर्णिमा शुक्लपक्षे तु कृष्णपक्षेत्वमास्मृता ||

• देव कर्म में शुक्ल पक्ष एवं पित्र पक्ष में कृष्ण पक्ष ऐसे दो पक्ष हैं  उनमें प्रथमा द्वितीय तृतीय चतुर्थी पंचमी षष्ठी सप्तमी अष्टमी नवमी दशमी एकादशी द्वादशी त्रयोदशी चतुर्दशी और शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा एवं कृष्ण पक्ष में अमावस्या तिथि का उल्लेख है |

(२) वार

 * सूर्य उदय होने के बाद अगले दिन सूर्य उदय होने तक के समय को वार कहा जाता है
 
          || वार ज्ञान ||

आदित्यश्चचन्द्रमाभौमौ बुधश्चाथ बृहस्पति: ।
शुक्र: शनैश्चर श्चैतै वासरा: परिकीर्तिता: ।।

अर्थात-  आदित्य ( रवि ) चंद्रमा ( सोम )भौम ( मंगल ) बुध बृहस्पति शुक्र शनि ये सात वार कहलाते हैं ।

• गुरुश्चन्द्रोबुध: शुक्र: शुभावारा: शुभे स्मृता: ।
क्रूरास्तु क्रूरकृत्येषु ग्राह्या भौमर्क सूर्यजा: ।।

अर्थात् - गुरु चंद्र बुध और शुक्र ये शुभ वार कहलाते हैं जो शुभ कार्य में शुभ फल देते हैं । तथा मंगल सूर्य और शनि ये क्रूर वार है जो क्रूर कार्य में ग्राह्य हैं ।

(३) नक्षत्र

* क्रांतीवृत्त के आरंभ स्थान से प्रत्येक 13 अंश 12 कला कला के विभाग को नक्षत्र कहते हैं ।

          || नक्षत्र ज्ञान ||



अश्विनी भरणी चैव कत्तिका रोहिणी मृग : । आर्द्रा पुनर्वसु : पुष्यस्ततोऽश्लेषा मघा तथा ॥
पूर्वाफाल्गुनिका तस्मादुत्तराफाल्गुनी तत : । हस्तश्वित्रा तथा स्वातिर्विशाखा तदनन्तरम्‌ ।।
अनुराधा ततो ज्येष्ठा ततो मूलं निगद्यते । पूर्वाषाढोत्तराषाढा त्वभिजिच्छ्रक्ष्णस्तत : ।। धनिष्ठा शतताराख्या पूर्वाभाद्रपदा तत : । उत्तराभाद्रपच्चैव रेवत्येतानि भानि च ।।

अर्थात् - 1 अश्विनी 2 भरणी 3. कृतिका 4 रोहिणी 5 मृगशिर 6 आर्द्रा 7 पुनर्वसु 8 पुष्य 9 आश्लेषा 10 मघा 11 पूर्वाफल्गुनी 12 उत्तरफाल्गुनी 13 हस्त 14 चित्रा 15 स्वाती 16 विशाखा 17 अनुराधा 18 ज्येष्ठा 19 मूला 20 पूर्वाषाढ़ा 21 उत्तराषाढा 22 श्रवण 23 धनिष्ठा 24 शतभिषा 25 पूर्वाभाद्रपद 26 उत्तरभाद्रपद  27 रेवती  28 अभिजीत ये अठ्ठाईस नक्षत्र हैं ।

*अभिजित नक्षत्र की गणना 27 नक्षत्रों में नहीं होती है क्योंकि यह नक्षत्र क्रान्ति चक्र से बाहर पडता है। यह मुहूर्तों आदि में इसे शुभ माना जाता है|

4 योगज्ञान
 वाक्पतेरर्क नक्षत्रं श्रवणाच्चान्द्रमेव च । 
गणयेत्तद्युतिंकुर्यायोगः स्यादृक्षशेषतः ।।

 * अर्थात् - पुष्य नक्षत्र से सूर्य नक्षत्र तक गिनकर और श्रवण नक्षत्र से चंद्र नक्षत्र तक गिनकर उन दोनों संख्याओं का योग करने पर उसमें 27 का भाग देने पर जो शेष संख्या रहती है वह विष्कुंभ आदि योग कहलाती है ।

विष्कंभः प्रीतिरायुष्मान् सौभाग्यः शोभनस्तथा । 
अतिगण्डः सकाच धृतिः शूलस्तथैव च ॥

 गण्डो वृधिव॒वश्चैव व्याघातो हर्षणस्तथा । 
वज्र सिंदधि व्यतीपातोवरीयान परिघः शिवः ।

सिद्धः साध्यः शुभः शुक्लो ब्रह्मन्द्रोवैधृतिःक्रमात् ।
सप्तविंशति योगास्तु कुर्युनर्नाम समं फलम् ।।

। सूर्य - चन्द्र की विशेष दूरियों की स्थितियों को योग कहते हैं । योग 27 प्रकार के होते हैं । दूरियों के आधार पर बनने वाले 27 योगों के नाम क्रमश : इस प्रकार हैं- 1.विष्कुम्भ , 2.प्रीति , 3.आयुष्मान , 4.सौभाग्य , 5.शोभन , 6.अतिगण्ड , 7.सुकर्मा , 8.धृति , 9.शूल , 10.गण्ड , 11.वृद्धि , 12.ध्रुव , 13.व्याघात , 14.हर्षण , 15.वज्र , 16.सिद्धि , 17.व्यतिपात , 18.वरीयान , 19.परिध , 20.शिव , 21.सिद्ध , 22.साध्य , 23.शुभ , 24.शुक्ल , 25.ब्रम , 26.इन्द्र और 27.वैधृति ।

5 करणनामानि । 

ववश्च वालवश्चैव कौलवस्तैतिलस्तथा । 
गरश्च वणिजो विष्टिः सप्तैतानि चराणि च ॥ 
 
अंते कृष्णचतुर्दश्यां शकुनिर्दर्शभागयोः । 
ज्ञेयं चतुष्पदं नागं किंस्तुघ्नं प्रतिपद्दले ॥  ॥

(१) बव (२) बालव (३) कोलव(४) तैतिल (४) गर् (४) वनिज (४) विष्टि सात कर्ण है।  इसके अतिरिक्त, कृष्णपक्ष की चतुर्दशी की दूसरी छमाही में शकुनि, अमावस्या के पहले छमाही में चतुष्पद, अमावस्या के उत्तरार्ध में नाग, और शुक्लपक्ष के प्रतिपदा के पहले छमाही में किंतूदान, इस प्रकार चार करण पाए जाते हैं।  

Saturday, 6 June 2020

आइये वेद विषय के बारे मे जाने (घन मन्त्र सुने)


*वेद मन्त्रो के पाठ के ग्यारह तरीके*
चारो वेद के मन्त्रो को लाखों वर्षो से संरक्षित करने के लिए,
वेदमन्त्रों के पदो मे मिलावट ,कोई अशुद्धि न हो इसलिए 
*हमारे ऋषि मुनियो ने 11 तरह के पाठ करने की विधि बनाई।*
*_वेद के हर मन्त्र को 11 तरह से पढ सकते हैं।_*

11 पाठ के पहले तीन पाठ को प्रकृति पाठ व अन्य आठ को विकृति पाठ कहते हैं।

     *||प्रकृति पाठ||*
 १ संहिता पाठ
 २ पदपाठ
 ३ क्रमपाठ 

   *||विकृति पाठ||*
४ जटापाठ
५ मालापाठ
६ शिखापाठ
७  लेखपाठ
८  दण्डपाठ
९ ध्वजपाठ
१० रथपाठ
११ घनपाठ

         *१ संहिता पाठ*

 इसमे वेद मन्त्रों के पद को अलग किये बिना ही  पढा जाता है।
 जैसे 
 अ॒ग्निमी॑ळे पु॒रोहि॑तं य॒ज्ञस्य॑ दे॒वमृ॒त्विज॑म् । होता॑रं रत्न॒धात॑मम् ॥

          *२ पदपाठ*

इसमें पदो को अलग करके क्रम से उनको पढा जाता है

अ॒ग्निम् । ई॒ळे॒ । पु॒रःऽहि॑तम् । य॒ज्ञस्य॑ । दे॒वम् । ऋ॒त्विज॑म् । होता॑रम् । र॒त्न॒ऽधात॑मम् ॥

         *३ क्रम पाठ*
पदक्रम- १ २ | २ ३| ३ ४| ४ ५| ५ ६
क्रम पाठ करने के लिए पहले पदों को गिनकर फिर 
फिर पहला पद दूसरे पद के साथ।
दूसरा तीसरे पद के साथ
तीसरा चौथे पद के साथ इस तरह से पढा जाता है
जैसे
अ॒ग्निम् ई॒ळे॒| ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम् |  पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑ |
य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| दे॒वम् ऋ॒त्विज॑म्| ऋ॒त्विज॑म् होता॑रम्|
होता॑रम् र॒त्न॒ऽधात॑मम्||

        *४ जटा पाठ*
पदक्रम -   १ २| २ १| १ २|
                २ ३| ३ १| २ ३|
                ३ ४| ४ ३| ३ ४|
                ४ ५| ५ ४| ४ ५|
                ५ ६| ६ ५| ५ ६|
                ६ ७| ७ ६| ६ ७|
 जैसे-      अ॒ग्निम् ई॒ळे॒|  ई॒ळे॒ अ॒ग्निम्| अ॒ग्निम् ई॒ळे॒| ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम्| पु॒रःऽहि॑तम् ई॒ळे॒| ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम्| पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑| य॒ज्ञस्य॑ पु॒रःऽहि॑तम्| पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑| य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| दे॒वम् य॒ज्ञस्य॑| य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| दे॒वम् य॒ज्ञस्य॑| य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| दे॒वम् ऋ॒त्विज॑म्| ऋ॒त्विज॑म् दे॒वम्| दे॒वम् ऋ॒त्विज॑म्| ऋ॒त्विज॑म् होता॑रम्| होता॑रम् ऋ॒त्विज॑म्|      ऋ॒त्विज॑म् होता॑रम्| होता॑रम् र॒त्न॒ऽधात॑मम्| र॒त्न॒ऽधात॑मम् होता॑रम्| होता॑रम् र॒त्न॒ऽधात॑मम्||

         *५ माला पाठ*
जिस तरह  पांच छह फूलो को लेकर माला गूथी जाती है सेम उसी तरह इसमे क्रम बनता है
पदक्रम-  १ २ ६ ५|
              २ ३ ५ ४|
              ३ ४ ४ ३|
              ४ ५ ३ २|
              ५ ६ २ १|

  अ॒ग्निम् ई॒ळे॒ र॒त्न॒ऽधात॑मम् होता॑रम् | ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम् होता॑रम् ऋ॒त्विज॑म्| पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑ य॒ज्ञस्य॑ पु॒रःऽहि॑तम्|....
  इस तरह से

        *६ शिखापाठ*

*पदक्रम-*  १ २| २ १ | १ २ ३| 
              २ ३| ३ २ | २ ३ ४|
              ३ ४| ४ ३ | ३ ४ ५|
              ४ ५| ५ ४ | ४ ५ ६|
              
     *७ ध्वज पाठ*
     
यह क्रम पाठ की तरह ही होता है।       
पदक्रम-  १ २ २ ३ ३ ४ 
              ३ ४ २ ३ १ २|
              ४ ५ ५ ६ ६ ७
              ६ ७ ५ ६ ४ ५|  

     *८ दण्डपाठ*
     
पदक्रम- १ २| २ १| १ २| २ ३ | ३ २ १||     
             २ ३| ३ २| २ ३| ३ ४ | ४ ३ २||
             इस तरह से
             
        *९ रथ पाठ*
        
पदक्रम-   १ २ ४ ५| 
               १ २ ५ ४|
               १ २ २ ३|
               ४ ५ ५ ४|
               ३ ४ ६ ७|
               ३ ४ ७ ६|
               ३ ४ ४ ५|  इत्यादि
               
        *१०  घनपाठ*

पदक्रम- १ २| २ १| १ २ ३| ३ २ १| 
             १ २ ३| २ ३| ३ २| २ ३ ४| ४ ३ २|
             २ ३ ४| ३ ४| ४ ३| ३ ४ ५| ५ ४ ३| इत्यादि

         *११ लेखापाठ*

       पदक्रम-  १ २  २ १  १ २| २ ३ ४  ४ ५ २   २ ३  ३ ४ इत्यादि
मित्रो इस तरह से ११ तरह के पाठ है जिनका गुरुकुल मे
ब्रह्मचारी पाठ करते हैं इससे वेद मन्त्र सुनने मे कर्णप्रिय लगते हैं। और विद्यार्थी मन्त्रों को याद भी कर लेते  हैं।

*जब विदेशी आक्रांताओ ने भारत के गुरुकुल नष्ट करने शुरु किये तो दक्षिण आदि के ब्राह्मणों ने  बहुत कष्ट सहकर वेदो के पाठ को आजतक सुरक्षित रखा।*
*इसलिए वेदो मे आजतक मिलावट नही हो पायी।*
*अन्य सभी ग्रन्थो मे मिलावट है सिर्फ वेदो को छोड़कर ।*

*जो तीन तरह के पाठ का अभ्यास करते हैं उनको त्रिपाठी (त्रिवेदी)*
जो *दो वेद पढे उन्हे #द्विवेदी (दवे), जो चारो पढे उनको चतुर्वेदी* इस तरह से उपाधि भी दी जाने लगी थी।
 आज भी जो लोग इन उपाधि को लगाते हैं उनके पूर्वज वैसे ही वेदपाठ करते थे।
*सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय हो।*