Thursday, 18 June 2020

सूर्यग्रहण मे क्या करे,क्या न?।surya grahan 21june ,2020।क्या है कंकणाकृ...


सूर्यग्रहण मे करे ये कार्य

  आइए जानते हैं आने वाले सूर्य ग्रहण के विषय में ग्रहण में
किन मंत्रों स्तोत्रो की उपासना करनी चाहिए?  

मंत्र दीक्षा लेनी चाहिए ?

  कैसे जल में स्नान करना चाहिए ?

दान करना चाहिए?

तो चलिए शुरू करते हैं इस ग्रहण के बारे में।यह सूर्य ग्रहण मिथुन राशि में होने वाला कंकणाकृती ग्रहण है और यह ग्रहण भारत में दिखाई देगा। इसका का स्पर्श काल और पूर्ण मोक्ष काल दोनों ही भारत में दिखाई देंगे। इसके बाद भारत में कंकणाकृती ग्रहण 2031 में लगभग 11 वर्षों

बाद में दिखाई देगा ।
सूर्य ग्रहण का समय
दिनांक : 21/06/2020
10/03Am to 03/28 pm
स्पर्श :10/03
ग्रहण मध्यकाल : 11/41
ग्रहण मोक्ष : 01/32
पूर्ण काल : 03/28

एक अण्डाकार कक्षा में पृथ्वी की परिक्रमा करना पृथ्वी से चंद्रमा को देखते हुए, इसकी कक्षा लगभग 13% छोटी और बड़ी हो जाती है।  जब चंद्रमा पृथ्वी के करीब होता है, तो चंद्रमा की परिक्रमा सूर्य की कक्षा से बड़ी दिखाई देगी।  अगर उस समय सूर्य ग्रहण होता है, तो यह खग्रास होगा। क्योंकि चंद्रमा की परिक्रमा सूर्य की परिक्रमा को पूरी तरह से कवर कर देगी। जब चंद्रमा, जो स्पष्ट रूप से सूर्य से छोटा होता है, सूर्य की कक्षा के केंद्र में होता है, सूर्य पूर्ण सूर्य की कक्षा पूर्ण को कवर किए बिना चंद्रमा की परिधि के चारों ओर एक कंगन के रूप में दिखाई देता है,  इसलिए तथाकथित "कंगन के आकार का" सूर्य ग्रहण कंकणाकृती ग्रहण कहलाता है।
< स्पर्शकाले -स्नान
   < मध्यकाले- होम - देवपूजा - श्राद्ध - मंत्रजाप
    <मोक्षकाले- दान यह सर्वोत्तम सोपान है ग्रहण का

ग्रहण में करने योग्य कार्य :
ग्रहण लगने के 12 घंटे पहले बैठ जाते हैं अर्थात सूतक लग जाता है, अत:भगवत भजन व जाप सिद्धि करना चाहिए।ग्रहण काल में मंत्र सिद्धि,  ,स्तोत्र पाठ   तीर्थ-स्नान ,दान, जप, पूजा-पाठ, भजन ,कीर्तन ,गुरु से दीक्षा प्राप्ती इत्यादि कार्य किये जा सकते है

 < स्पर्शकाले -स्नान 

 < मध्यकाले- होम - देवपूजा - श्राद्ध - मंत्रजाप 

  <मोक्षकाले- दान यह सर्वोत्तम सोपान है ग्रहण का
मन्त्र पाठ,स्त्रोत -पाठ मे यदी देखा जाये तो
🕉️ गं गणपतये नम :।।
🕉️ नमो भगवते वासुदेवाय ।।

एवं जिन ग्रहो कि पीडा है, उनके मूल-मन्त्र ,वैदिक-मन्त्रोका जप तथा नव -ग्रहो‌ के स्त्रोतो का पाठ एवं गणपती अथर्वशीर्ष ,देवी-अथर्वशीर्ष,लक्ष्मी जी कि प्राप्ती के लिएश्री-सूक्त का पाठ कर सकते है।

ग्रहण में करने योग्य कार्य :
ग्रहण लगने के 12 घंटे पहले बैठ जाते हैं,अर्थात सूतक लग जाता है, अत:भगवत भजन व जाप सिद्धि करना चाहिए।
ग्रहण काल में मंत्र सिद्धि,  ,स्तोत्र पाठ   तीर्थ-स्नान ,दान,
जप, पूजा-पाठ, भजन ,कीर्तन ,गुरु से दीक्षा प्राप्ती इत्यादि कार्य किये जा सकते है

* ग्रहण काल में क्या न करें :

ग्रहण काल में शयन, मूर्ति स्पर्श व अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। ग्रहण के समय सूर्य को सीधा ना देखना अंधता जैसी शिकायत हो सकती हैं।  ग्रहण काल ​​में सोना, मल-मूत्र, भोजन करना, पानी पीना यह सब कार्य वर्जित है। ग्रहण काल ​​में पका हुआ भोजन कटी हुई सब्जी ग्रहण नहीं करना चाहिए।  दूषित हो जाता है।हमारे ऋषि-मुनियों ने सूर्य ग्रहण लगने के समय
भोजन के लिए मना किया है, क्योंकि उनकी मान्यता थी कि ग्रहण के समय में कीटाणु बहुलता से फैल जाते हैं। खाद्य वस्तु,जल आदि में सूक्ष्म जीवाणु एकत्रित होकर उसे दूषित कर देते हैं। इसलिए ऋषियों ने पात्रों मे कुश डालने को कहा है, ताकि सब कीटाणु कुश में एकत्रित हो जाएं और उन्हें ग्रहण के बादफेंका जा सके। पात्रों में अग्नि डालकर उन्हें पवित्र बनाया जाता है ताकि कीटाणु मर जाएं।ग्रहण के बाद स्नान करने का विधान इसलिए बनाया गया ताकि स्नान के दौरान शरीर के
शअंदर ऊष्मा का प्रवाह बढ़े, भीतर-बाहर के कीटाणु नष्ट हो जाएं और धुल कर बह जाएं।
*  किस-किस को छूट रहती है :

बालक, वृद्ध, मरीज व गर्भवती महिलाएं अन्न ग्रहण कर सकती हैं।
यदि हो सके तो ग्रहण के 2 घंटे पहले से भोजन का त्याग कर दें।
* कौन ग्रहण न देखें :

गर्भवती महिलाएं ग्रहण को न देखें एवं अशुभ फल वाले
भी ग्रहण को न देखें।
* ग्रहण के बाद क्या करें :

ग्रहण समाप्ति के बाद किसी पवित्र नदी में स्नान करें।
यदि पवित्र नदी में न जा सकें तो किसी, तालाब, बावड़ी, कुआं या जलाशय में स्नान करें। यह भी न हो सके तो घर में स्नान के जल में किसी तीर्थ का जल मिलाकर स्नान करें।स्नान के बाद कंबल या काली तिल या अन्नदान करें। हो सके तो स्वर्ण व अन्य वस्तुओं का भी दान करें।

*  विशेष :

अशुभ फल वाले को अनिष्ट की शांति के
लिए हवन, जाप, गौदान व वस्त्रदान करना चाहिए।

अत: यह ग्रहण जहां दिखाई दे,वहीं पर ग्रहण के नियम पालन करें।ग्रहण में पालन करने के नियमों का पता होना चाहिएकि क्या ग्रहण अपनी जगह पर दिखाई देगा।  उस नियम कापालन करें जहां ग्रहण दिखाई देता है। जो कोई भी ग्रहण के दौरान पूजा करता है और भिक्षा देता है,उसे ग्रहण की बुरी भावना कभी नहीं होती है।ग्रहण में की गई पूजा कई फल देती है। 
भोजन: फलों को ग्रहण की शुरुआत से ग्रहण के स्पर्श तक खाया जाना चाहिए।  पका हुआ भोजन न लें। वेद के दौरान पके हुए भोजन का प्रसाद न लेकर सकारिया, फल आदि ले सकते हैं। क्योंकि ग्रहण में सूतक है।देवसेवा, देवप्रदर्शन, मंदिरों में मूर्तियों की पूजा आदि;  पुण्य काल में कुछ भी खाने या पीने के लिए नहीं। केवल मंत्रों का जाप करने के लिए। पुण्य काल शुरू हो जाता है, इसलिए गणेशजी का स्मरण करें, दीप जलाएं, मन्त्र पाठ करें। पुण्य काल के अंत तक पूजा करें।मोक्ष के बाद स्नान करके ही भोजन किया जा सकता है। "ग्रहण वेद" शुरू होने से पहले: ग्रहण के समय, आवश्यक वस्तुओं जैसे कि आसन, दीप, माला, पाठ्य पुस्तकेंवेद शुरू होने से पहले अलग रखनी चाहिए,क्योंकि तब पूजा का स्थान विचलित नहीं होना चाहिए।कुश (दर्भ -  डाभ)  स्थापित करे।अपने मन में संकल्प करें कि आप क्या दान करना चाहते हैं? दान ग्रहण में नहीं किया जाता है,यह केवल ग्रहण के लिए किया जाता है। विद्यादान, अन्नदान, गौदान आदि गुरु की आज्ञा केअनुसार दान करना। 

यह ग्रहण मेष, सिंह, वृश्चिक और मीन राशि
के लिए शुभ है।  दूसरे के लिए अशुभ है।

           

                                                            जुगल व्यास

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HAR MAHADEV

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