Thursday, 7 May 2020

| प्रात: उठ कर करे ये नित्य कार्य |



प्रातः जागरणके पश्चात् स्नानसे पूर्वके कृत्य प्रातःकाल उठनेके बाद स्नानसे पूर्व जो आवश्यक विभिन्न कृत्य है . शास्त्रोंने उनके लिये भी सुनियोजित विधि - विधान बताया है । गृहस्थको अपने नित्य - कर्मोकि अन्तर्गत स्नानसे पूर्वके कृत्य भी शास्त्र - निर्दिष्ट पद्धतिसे ही करने चाहिये ; क्योंकि तभी वह अग्रिम षट् - कर्मकि करनेका अधिकारी होता है । अतएव यहाँपर क्रमशः जागरण - कृत्य एवं स्नान - पूर्व कृत्योंका निरूपण किया जा रहा है ।

 ब्राह्म - मुहूर्तमें जागरण - 

सूर्योदयसे चार घड़ी ( लगभग डेढ़ घंटे ) पूर्व ब्राह्ममुहूर्तमें ही जग जाना चाहिये । इस समय सोना शास्त्रमें निषिद्ध है ।

 करावलोकन - 

आँखोंके खुलते ही दोनों हाथोंकी हथेलियों देखते हुए निम्नलिखित श्लोकका पाठ करे 
कराग्रे वसते लक्ष्मी : करमध्ये सरस्वती । 
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम् ॥ ( आचारप्रदीप ) ' 

हाथके अग्रभागमें लक्ष्मी , हाथके मध्यमें सरस्वती और हाथके मूलभागमें ब्रह्माजी निवास करते हैं , अतः प्रातःकाल दोनों हाथोंका अवलोकन करना चाहिये । ' -
 ब्राह्म मुहर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी । तां करोति द्विजो मोहात् पादकृच्छ्रेण शुद्ध्यति ।
ब्राह्ममहर्तकी निद्रा पुण्यका नाश करनेवाली है । उस समय जो कोई भी शयन करता है । उसे इस पापसे छुटकारा पानेके लिये पादकच्छ नामक ( व्रत ) प्रायश्चित्त करना चाहिये । ( रोगकी अवस्थामें या कीर्तन आदि शास्त्रविहित कार्योक कारण इस समय यदि नींद आ जाय तो उसके लिये प्रायश्चित्तकी आवश्यकता नहीं होती ) ।



भूमि - वन्दना -

 शय्यासे उठकर पृथ्वीपर पैर रखनेके पूर्व पृथ्वी माताका अभिवादन करे और उनपर पैर रखनेकी विवशताके लिये उनसे क्षमा माँगते हुए निम्न श्लोकका पाठ करे 
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डिते । 
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे । । 

' समुद्ररूपी वस्त्रोंको धारण करनेवाली , पर्वतरूपस्तनोंसे मण्डित भगवान् विष्णुकी पत्नी पृथ्वीदेवि ! आप मेरे पाद - स्पर्शको क्षमा करें । 
मङ्गल - दर्शन - 

तत्पश्चात् गोरोचन , चन्दन , सुवर्ण , शङ्ख , मृदंग , दर्पण , मणि आदि माङ्गलिक वस्तुओंका दर्शन करे तथा गुरु , अग्नि और सूर्यको नमस्कार करे । 

_ _ _ माता , पिता , गुरु एवं ईश्वरका अभिवादन - पैर , हाथ - मुख धोकर कुल्ला करे । इसके बाद रातका वस्त्र बदलकर आचमन करे ।

                                                       जुगल व्यास

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HAR MAHADEV

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