Saturday, 18 April 2020

आइए जाने ग्रहों की दिशा, जाति, दृष्टि ,उच्च नीच्च अंश |



 ग्रहाणां राजत्वादिनिरुपणम् 

राजा रविः शशधरश्च बुधः कुमारः सेनापतिः क्षितिसुतः सचिवौ सितेज्यौ । 
भृत्यस्तथा तरणिजः सबला ग्रहाश्च कुर्वन्ति जन्मसमये निजमेव रूपम्   || 

जातक शास्त्र में सर्यादि  ग्रहों में सूर्य और चन्द्र  को राजा , बुध को राजकुमार , भौम को सेनापति , गुरु और शुक्र को मन्त्री और शनि को सेवक माना गया है । फलादेश में इसका विशेष प्रयोजन होता है । । जातक की कुण्डली में जो ग्रह बली होता है वह ग्रह अपने अनुसार जातक को बनाता है |


 उच्चनीच्चग्रहा:

अजवृषभमृगाङ्गनाकुलीरा झपवणीजौ       दिवाकरदितुंगा।
 

दशशिखिमनयुक्तिथीन्द्रियाशैस्त्रिनवकविंशतिभिश्चतेsस्तिनीचा:।।

    आओ इसे जाने  चक्र द्वारा |


                                            उच्च ग्रह राशिचक्रम् 

 ग्रहा:
सू .
 चं.
 मं
बु.
 गु.
 शु .
 
उच्च राशि
मेष 
 वृषभ 
 मकर 
 कन्या 
 कर्क 
 मीन 
 तुला 
अंशa
 10
 3
 28
 15
 5
 27
 20




                                                              
                                                 नीच्च ग्रह राशिचक्रम् 


  ग्रहा:
सू .
 चं.
 मं
बु.
 गु.
 शु .
 
नीच्च राशि
 तुला 
 वृषभ 
कर्क  
 मीन 
 मकर 
 कन्या 
 मेष 
अंशa
 10
 3
 28
 15
 5
 27
 20







दिगीशास्तथाग्रहाणां शुभाशुभत्वविचार : 

प्राच्यादीशा रविसितकुजराहुयमेन्दुसौम्यवाक्पतयः ।
क्षीणेन्द्वर्कयमाराः पापास्तैः संयुतः सौम्यः ॥ 

 सूर्य , शुक्र , भौम , राहु , शनि , चन्द्र , बुध और गुरु क्रम से पूर्वादि आठों दिशाओं के अधिपति हैं । अर्थात् पूर्वदिशा का अधिपति सूर्य , अग्निकोण का अधिपति शुक्र , दक्षिण दिशा का अधिपति मंगल , नैऋत्य कोण का राहु , पश्चिम दिशा का शनि , वायव्यकोण का चन्द्रमा , उत्तर दिशा का बुध और ईशानकोण का अधिपति गुरु है । ग्रहों में क्षीणचन्द्र , सूर्य , शनि और भौम पापग्रह कहलाते हैं । पापग्रहों के साथ बुध पापी होता है । पूर्णचन्द्र , बुध , गुरु और शुक्र शुभग्रह हैं । 





                           ग्रहाणां  शुभपापसंज्ञा 

 शुभग्रहा:
 गुरुः ,शुक्रः ,पूर्णचन्द्रः ,बुधः 
 पापग्रहा:
 सूर्यः ,शनिः,मङ्गलः,क्षीणचन्द्रः ,पापयुक्तबुधः 


                             दिशाधिपतिपज्ञानम् 


 दिशाः 
 पू.
 आ.
 द.
 नै.
 प. 
 वा.
 उ.
 ई.
 ग्रहा:
सू. 
 शु.
 मं. 
 रा.
 श.
 चं.
 बु.
 बृ.


ग्रहाणां पुरुषादिसंज्ञा वेदाधिपत्यञ्च

क्लीबपती बुधसौरी चन्द्रसितौ योषितां नृणां शेषाः । 
ऋगथर्वसामयजुषामधिपा  गुरुसौम्यभौमसिताः ॥   

बुध और शनि नपुंसकों के , चन्द्र और शुक्र स्त्रियों  के , सूर्य , मंगल और गुरु पुरूषों के अधिपति हैं । ऋग्वेद का गुरु , अथर्ववेद का बुध , सामवेद का मंगल और यजुर्वेद का शुक्र अधिपति हैं |


ग्रहाणां जातयः 

जीवसितौ विप्राणां क्षत्राणां रविकुजौ विशां चन्दः । 
शूद्राधिपः शशिसुतः शनैश्चरः सङ्करभवानाम् ॥ 

 गुरु एवं शुक्र ब्राह्मणों का , सूर्य एवं मंगल क्षत्रियों का , चन्द्र वैश्यों का , बुध शूद्रों का तथा शनि वर्णसङ्करों का स्वामी होता है |

 ग्रहाणां  ब्राह्मणादिसंज्ञा 

 वर्णः 
 ग्रह:
 ब्राह्मणः 
 गुरुः ,शुक्रः 
क्षत्रियः  
 सूर्यः ,भौमः 
 वैश्यः 
 चन्द्रः 
 शूद्रः 
 बुधः 
 वर्णसङ्करः 
 शनिः 

ग्रहाणां स्थानबलम् 

बलवान् स्वगृहोच्चांशे मित्रः वीक्षितः शुभैश्चापि । 
चन्द्रसितौ स्त्रीक्षेत्रे पुरुषक्षेत्रोपगाः शेषाः ॥ 

सभी ग्रह अपनी राशि , अपने उच्च राशि , अपने । नवांशराशि , अपने मित्र की राशि में तथा शुभग्रह अर्थात् गुरु , शुक्र , पूर्णचन्द्र एवं बुध से दृष्ट हो तो बलवान् होता है । सम राशियों वृष , कर्क , कन्या , वृश्चिक , मकर एवं मीन में चन्द्रमा तथा शुक्र बलवान् होते हैं । शेष ग्रह रवि मंगल , बुध , गुरु एवं शनि विषम राशि अर्थात् मेष , मिथुन , सिंह , तुला , धनु एवं कुम्भ में स्थित हो तो बलवान् होते हैं |


 द्रष्टिविचार 

 पादैकदृष्टिदशमे तृतीये द्विपाद दृटिर्नवपंचमे च ॥
 त्रिपाद दृष्टि श्चतुरष्टकेवासंपूर्णदृष्टिः किलसप्तमेच ॥ 
 तृतीये दशमे मन्दो नवमे पंचमे गुरुः ॥
 विंशति वीक्ष्यते विश्वांश्चतुर्थे चाष्टमे कुजः ॥   

सूर्य, चंद्रमा, बुध और शुक्र एक दृष्टि से तीसरे और तीसरे स्थान को देखते हैं, नौवें और पांचवें स्थान को लिपिड दृश्य में, चौथे और आठवें स्थान को त्रिपद दृश्य में और सातवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं।  नए देश में तीसरे स्थान पर शनेश्वर, नौवें और पांचवें स्थान पर बृहस्पति और चौथे स्थान पर मंगल है।  आठवां स्थान इसे पूर्ण दृष्टि से देखता है।  इसके अलावा, तीन ग्रह उन्हें पूर्वव्यापी में देखते हैं।

ग्रहदृष्टिस्थानानि
दशम तृतीये नव - पञ्चमे चतुर्थाष्टमे कलत्रं च । 
पश्यन्ति पादवृद्ध्या फलानि चैवं प्रयच्छन्ति । 

ग्रह जिस स्थान में रहता है , उस स्थान से तृतीय एवं दशम स्थान को एक चरण से , नवम एवं पंचम स्थान को दो चरणसे , चतुर्थ एवं अष्टम स्थान को तीन चरण से तथा सप्तम स्थान को सम्पूर्ण दृष्टि अर्थात् चार चरण से देखते हैं । सभी ग्रह अपने चरण वृद्धि के अनुपात से ही शुभाशुभ दृष्टि जन्य फल भी देते हैं |

                         
ग्रहाणां  विशेषदृष्टिविचार : 

पूर्णम्पश्यति रविजस्तृतीयदशमे त्रिकोणमपि जीवः । 
चतुरस्त्र भूमिसुतः सितार्कबुधहिमकरा : कलत्रं च । । 

शनि तृतीय और दशम स्थान को , बृहस्पति पंचम और नवम स्थान को , मंगल चतुर्थ एवं अष्टम स्थान को पूर्णदृष्टि से देखता है तथा शुक्र , सूर्य , बुध और चन्द्रमा मात्र सप्तम स्थान को ही पूर्ण दृष्टि से देखते हैं ।



                                                                         जुगल व्यास 

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HAR MAHADEV

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