Monday, 13 April 2020

आइए जाने जन्म कुंडली के द्वादश भाव |

    जन्मकाल विचार


उत्तमं च जलस्त्रावे  मध्यमम् शीर्षदर्शने |      
  पतने कनिष्टं  स्यात्त्रिविधं   जन्मलक्षणम्  ||    

अर्थात बालक के जन्म के समय प्रथम जल का श्राव  होता  है, उस समय बालक का  जन्मसमय उतम  माना जाता  है, क्योकि प्रथम द्वार खुल कर  बालक को हवा  लगती  है, उसके बाद शीर्ष के दिखने पर जन्मसमय  को  मध्यम   माना  जाता  है  तथा बालक के बार  आने पर जन्मसमय  कनिष्ठ  मत माना  जाता  है |

  कुण्डली 

ग्रहों के बारे में जान लिया और राशि के बारे में जान लिया । अब जानते हैं कुण्डली के बारे में । कुण्डली का खाका इस प्रकार है । थोडी देर इस खाके में लिखे हुए नम्बरों को भूल जाते हैं । यह जो उपर का बडा चौकौर हिस्सा है , इसे लग्न कहते हैं । लग्न को । पहला भाव भी कहते हैं और यहीं से भाव की गणना की जाती है । समझने के लिए ग्राफिक्स में देखें यानि कि यह पहला भाव , यह दूसरा भाव , यह तीसरा भाव और यह बारहवां भाव । कुण्डली में भाव कि जगह निश्चित है चाहे नम्बर वहां कोई भी लिखा हो । 
राशियों के स्वामी निश्चित हैं और भाव के स्वामी हर कुण्डली के हिसाब से बदलते रहते हैं ।
आपके जन्म समय और जन्म तिथि के समय आकाश में स्थित ग्रहों का संयोजन एक विशेष चक्र के रुप में करना कुंडली चक्र या लग्न चक्र कहलाता है। कुंडली, विशेष रूप से वैदिक ज्योतिष पर आधारित रहता है। व्यापक अर्थ में, ग्रहो की स्थिति, दशा विश्लेषण, कुंडली में बनने वाले दोष एवं उनके उपाय, पत्रिका में विशेष योगों का संयोजन, ग्रहों का शुभाशुभ विचार इत्यादि का समावेश सम्पूर्ण जन्म कुंडली में किया जाता है। कुंडली को जन्म कुंडली या जन्मपत्रिका भी कहते हैं।





तन्वादिद्वादशभावानां  संज्ञा

तनुधनसहजसुहृत्सुतरिपुजायामृत्युधर्मकर्माख्या:|
व्यय   इति  लग्नाद्भावाश्र्च्तुरस्त्राख्येऽष्टमचतुर्थे   ||



१ लग्नभावफलम्

लग्रस्थितो  दिनकर:  कुरुतेअङ्गपीडां  पृथ्वीसूतौ    वितनुते    रुधिरप्रकोपम |
छायासुत: प्रकुरते बहुदुःखभाजम् जिवेन्दुभार्गवबुधा: सुखकान्तिदा: स्यु:||२||

यदि जन्म लग्न में जो सूर्य हो तो अंग पीड़ा,मंगल हो तो रक्त विकार,शनि हो तो बहुत दुखदायक होता है गुरु,चंद्र,शुक्र तथा बुध हो तो सुख जानना चाहिए |

२ धनभावफलम्

दु:खावहा  धनविनाशकरा:   प्रदिष्टा   वित्ते   स्थिता  रविशनैश्वरभूमिपुत्र|:|
चन्द्रो बुधः  सुरगुरुरभृगुनन्दनो  वा  नानाविधं  धनचयं कुरुते:  धनस्थ: ||३||

दूसरे धन भाव में सूर्य, शनि और मंगल हो तो दुख का बढ़ावा होता है तथा धन का नाश होता है ,परंतु चंद्र,बुध ,गुरु, शुक्र हो तो अनेक  प्रकार के धन की प्राप्ति होती है |

३ सहजभावफलम्

भानु करोति  विरुजं  रजनीकरो   पि कीर्त्या   युतं  क्षितिसुत: प्रचुरप्रकोपम् |
ऋद्धिं बुधः  सुधिषणं सुविनीतवेषं स्त्रीणां प्रियं गुरुकवी  रविजस्तृतीये ||४||

तीसरे सहज भाव में सूर्य हो तो निरोगी करता है , चंद्रमा हो तो   कीर्तिमान, मंगल हो तो अत्यंत क्रोधी, बुध हो तो सर्व कार्य सिद्धि करने वाला उसी प्रकार गुरु ,शुक्र और शनि हो तो मनुष्य बुद्धिमान परम चतुर और स्वरूपवान होता है उसी प्रकार स्त्रियों को प्रिय होता है।

४ सुहृत् भावफलम्

आदित्यभौमशनय:  सुखवर्जिताङ्ग°  कुर्वन्ति  जन्मनि  नरं  सुचिरं  चतुर्थे |
सोमो बुध  सुरगुरुरभृगुनन्दनो  वा सौख्यान्वितं  च  नृपकर्मरतप्रधानम् ||५||

चौथे सुहृत् भाव में सूर्य ,मंगल और शनि हो तो हमेशा मनुष्य के सुख का विनाश होता है ,परंतु चंद्र ,बुध ,गुरु और शुक्र हो तो उस मनुष्य को संपत्ति मिलती है तथा राज्य में प्रीतिवान अग्रसर होता है |

५ सुतभावफलम्

पुत्रे   रवि:   प्रचुरकोपयुतं   बुधश्व   स्वल्पत्मजं   शनिधरातनुजावपुत्रं|
शुकेन्द्रुदेवगुरुव:  सुताधामसंस्था: कुर्वन्ति  पुत्रबहुलं  सुखिनं  सुरुपम् ||६||

पांचवे सुत भाव में सूर्य हो तो मनुष्य बहुत क्रोधी, बुध हो तो थोड़ी संतान वाला ,शनि और मंगल हो तो संतानहीन, शुक्र और चंद्र और गुरु हो तो बहुत संतति वाला सुखी स्वरुप पान होता हैै |

६ रिपुभावफलम्

मार्तडभूमितनयौ   ह्यरिपक्षनाशनं   मन्द:  करॊति   पुरुषं   बहुराज्यमानम् |
शुक्रो बुधो हि  कुमतिं सरुज जीवं -श्चन्द्र:  करॊति विकलं  विफलप्रयत्नम्||७||

छठे रिपु भाव में सूर्य और मंगल हो तो शत्रु पक्ष का नाश होता है। शनि हो तो राजाओं की तरफ से मनुष्य को सम्मान मिलता है ,शुक्र और बुध हो तो कुमति करवाता है, गुरु हो तो रोग करवाता है और चंद्र हो तो विफलता को प्राप्त करवाता है उसी प्रकार उसके सभी प्रयत्न, उपाय निष्फल जाते है|

७ जायाभाव फलम्

तिग्मांशुभौमारविजा: किल  सप्तमस्था  जायां  कुकर्मनिरतां तनुसंततिं च |
जिवेन्दुभार्गवबुधा  बहुपुत्रयुक्तां  रुपान्वितां  जनमनोहररूपशिलां ||८||

सातवें जाया भाव में सूर्य ,मंगल और शनि हो तो मनुष्य की स्त्री कुकर्म में ,थोड़ी संतान वाली होती है और गुरु, चंद्र ,शुक्र और बुध हो तो मनुष्य   के मन को हरने वाली तथा स्वरूपवाली ,आचरण वाली उसी प्रकार बहू-पुत्र संतान वाली होती है |


८ मृत्युभावफलम्

सर्वे ग्रहा  दिनकरप्रमुखा  नितान्तं  मृत्युस्थिता  विदधते  किल  दुष्ठबुद्धिम् |
शशास्त्राभिघातपरिपीडीतगात्रभागं  सौख्यौविंहिनमतिरोगगणैरूपेतम् ||९||


आठवीं मृत्यु भाव में सूर्य ग्रह को छोड़कर किसी भी ग्रह होने पर मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट ,शरीर पर कोई भी किसी भी भाग में शस्त्र के लगने की तथा पीड़ा उत्पन्न होने की सुख के विनाश होने की उसी प्रकार बहुत रोग वाला होता है।

९ धर्मभावफलम्

धर्मस्थिता रविशनैश्वरभूमिपुत्रा:  कुर्वान्ती  धर्मरहितं   विमतिं।  कुशिलम्|
चन्द्रो बुधो  भृगुसुतश्व सुरेन्द्रमन्त्री धर्मक्रीयासु निरतं कुरुते मनुष्यम् ||१०|| 


नवे धर्म भाव में सूर्य ,शनि और मंगल हो तो मनुष्य धर्म रहित मति हीन तथा नटखट आचरण वाला होता है। किंतु चंद्र बुध शुक्र और गुरु हो तो मनुष्य धर्म क्रिया में प्रीति वाला होता है|


१० कर्मभावफलम्

आदित्यभौमनाशनय:   किल   धर्मसंस्था:    कुर्युर्नरं   बहुकुकर्मरतं  कुपुत्रम्|
चन्द्र:  सुकिर्तिमुशना  बहुवित्तयुक्तं  रुपान्वितं  बुधगुरू    शुभकर्मभाज || १||

 दसवे कर्म भाव में सूर्य ,मंगल और शनि हो तो मनुष्य को कर्मी तथा कुपुत्र वाला होता है। चंद्र हो तो कीर्ति वाला शुक्र हो तो धनवान तथा स्वरूपा उसी प्रकार बुध और गुरु हो तो उस शुभ कार्य में करने वाला प्रीति वाला होता है।

११   लाभभावफलम्


लाभस्थितो  दिनकरो   नृपलाभकरी   तारापतिबहुर्धनं  क्षितिजश्व   नारिम् |
सौम्यौ विवेकसहितं सुभगं  च जीव: शुक्र:करोति धनिनं रविज: सुकिर्तिम||२||


गायरवे  लाभ भाव में सूर्य हो तो राजा  से  लाभ करवाता है ,चंद्र हो तो बहुत धनवान, मंगल हो तो स्त्री सुख मिलता है ,बुध हो तो मनुष्य हमेशा विवेकी, ज्ञानी रहता है, गुरु हो तो ऐश्वर्या वाला होता है, शुक्र हो तो धनवान होता है और शनि हो तो अच्छी कीर्ति वाला होता है |

      १२    व्ययभावफलम्

          सूर्यं  करोति  पुरुषं  व्ययगो   विशीलं
          काण°  शशी  क्षितिसुतो  बहुपापभाजम्|
          चन्द्रात्मजो  गतधनं  धिषणं  कुशांगं
          शुक्रो  बहुव्ययकरं  रविजं सूतीव्रत:||३||



बारहवे व्यय भाव में सूर्य हो तो मनुष्य दुष्प्रभाव वाला ,चंद्र हो तो काकरने वाला ,मंगल हो तो पाप कर्म करने वाला बुध हो तो धन हीन ,गुरु हो तो दुर्बल अंगों वाला, शुक्र हो तो खूब खर्च कराने वाला और शनि हो तो शिक्षण प्रकृति वाला होता है।




                                                                      जुगल व्यास 

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HAR MAHADEV

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