आइए जाने ग्रहों का स्वरूप |
1 सूर्यस्य स्वरूपम्
चतुरस्रो नात्युच्चस्तनुकेशः पैत्तिको स्थिसारश्च |
शूरो मधुपिङ्गाक्षो रक्तश्यामः पृथुश्चार्कः ||
रवि चतुरस्र शरीर, मध्यम उच्च, अल्पकेश से युक्त, पित्त प्रकृति वाला,मजबूत अस्थि वाला, वीर, मधुसदृश पिङ्गलनयन , रक्तश्याम वर्ण एवं स्थूलशरीर वाला है ||
2 चन्द्रस्य स्वरूपम्
स्वच्छ: प्राज्ञो गौरश्चपलः कफवातिको रूधिरसारः |
मृदुवाग् घृणी प्रियसखस्तनुवृत्तश्चन्द्रमाः प्रांशुः||
चन्द्रमा स्वच्छ कान्तिवाला, मेधावी, गौरवर्ण, चञ्चल , कफ एवं वात प्रकृति, अत्यधिकरक्त वाला, मधुर बोलने वाला, दयावान, मित्र का प्रिय, कृश एवं गोल आकृति तथा उन्नत शरीर वाला होता है |
3भौमस्य स्वरूपम्
हिंस्र ह्रस्वस्तरूणः पिङ्गाक्ष: पैत्तिको दुराधर्षः|
भौम हिंसक, छोटे शरीर बाल, युवक कपिलवर्णाकार नेत्र से युक्त, पित प्रकृति युक्त, उद्धत , चञ्चलस्वभाव युक्त,रक्त मिश्रित गौर वर्ण का शरीर तथा अधिक मज्जा युक्त शरीर वाला होता है |
मध्यमरूपः प्रियवाग् दूर्वाश्यामः शिकायतो निपुणः |
त्वक् सारस्त्रिस्थूणः सततं ह्यष्टस्तु चन्द्रसुतः ||
बुध सामान्य स्वरूप वाला, मधुर भाषी, दूर्वादल के समान श्यामवर्ण वाला, उभरीहुई नसो से युक्त शरीर वाला, कार्य करने में निपुण, स्थूल त्वचा, कफ, पित्त एवं वात तीनों प्रकृति वाला और सर्वदा प्रसन्न रहने वाला होता है|
5 बृहस्पतेः स्वरूपम्
ईषत्पिङ्गलकेशो मेदःसारो गुरूर्दीर्घश्च ||
गुरू मधु समान , पिंगल नेत्र वाला, बुद्धिमान्, स्थूलशरीर वाला कफप्रकृति से युक्त, गौरवर्ण, अल्प पिंगल वर्ण वाले केशों से युक्त, अधिक चर्बीवाला और दीर्घाकार शरीर वाला होता है |
6 शुक्रस्य स्वरूपम्
श्यामो विकृष्टपर्वा कुटिलासितमू्र्द्धजः सुखी कान्तः |
कफवातिको मधुरवाग्भृगुपुत्रः शुक्रसारश्च ||
शुक्र ग्रह श्याम वर्ण का , आकर्षित अवसरों से युक्त, कुटिलाकार काले केशो से युक्त, सुखी, मनोहर, कफ और वात प्रकृति से युक्त, मधुरभाषी और वीर्यवान् है |
7 शनैः स्वरूपम्
स्थूलनखदन्तरोमा शनैश्चरो स्रायुशारश्च ||
शनि दुर्बल और उच्च शरीर वाला, कपिलवर्ण का नेत्र वाला, श्यामवर्ण का शरीर वाला, परनिन्दक, मन्दगामी, वातप्रकृति से युक्त, स्थूल नख, दन्त और रोम वाला तथा अधिक स्नायुओं से युक्त है |
8 राहोः स्वरुपम्
धूम्रकारो नीलतनुः नुस्खे पि भयंकरः |
वातप्रकृतिको धीमान् स्वर्भाप्रतिमः शिखी ||
राहु धूएं जैसा नीलरङ्ग का, वनचर, भयंकर, वातप्रकृति का, तथा बुद्धिमान् होता है, ऐसा ही केतु है |
(यह वर्णन पराशर का है |)
हिन्दू ज्योतिष के अनुसार असुर स्वरभानु का कटा हुआ सिर है, जो ग्रहण के समय सूर्य और चन्द्रमा का ग्रहण करता है। इसे कलात्मक रूप में बिना धड़ वाले सर्प के रूप में दिखाया जाता है, जो रथ पर आरूढ़ है |और रथ आठ श्याम वर्णी कुत्तों द्वारा खींचा जा रहा है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार राहु को नवग्रह में एक स्थान दिया गया है। दिन में राहुकाल नामक मुहूर्त (२४ मिनट) की अवधि होती है जो अशुभ मानी जाती है।
9 केतोः स्वरूपम्
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम् ।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् ॥
पलाश पुष्प के समान ,तारो के समान मस्तक वाला , रुद्र स्वरुप , रोद्रात्मक गोर वर्ण है। हिन्दू ज्योतिष में उत्तरी लूनर नोड को दिया गया नाम है। केतु एक रूप में स्वभानु नामक असुर के सिर का धड़ है। यह सिर समुद्र मन्थन के समय मोहिनी अवतार रूपी भगवान विष्णु ने काट दिया था। यह एक छाया ग्रह है।माना जाता है कि इसका मानव जीवन एवं पूरी सृष्टि पर अत्यधिक प्रभाव रहता है। कुछ मनुष्यों के लिये ये ग्रह ख्याति पाने का अत्यंत सहायक रहता है। केतु को प्रायः सिर पर कोई रत्न या तारा लिये हुए दिखाया जाता है, जिससे रहस्यमयी प्रकाश निकल रहा होता है।
ग्रहस्वरूपप्रयोजनम्
एते ग्रहा बलिष्ठाः प्रसूतिकाले नृणां स्वमूर्तिसमम् |
कुर्युर्देहं नियतं बहवश्च समागता मिश्रिम् || 1 ||
जातक के जन्म समय में बलवान ग्रह अपने स्वरूप और गुण के समान ही जातक को बनाते हैं |यदि जन्म के समय अनेक ग्रह बलवान हो तो जातक में तदनुसार मिश्रित स्वरूप और गुण होते हैं |
श्रीनवग्रहस्तोत्रम्
जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् |
तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ॥ १ ॥
दधिशकतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम् |
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम् ॥ २ ॥
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं तं मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ||
प्रियङ्गुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम् ।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम् ॥ ४ ॥
देवानां च ऋषीणां च गुरुं काञ्चनसंनिभम् ।
बद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् ॥
हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् ।
सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् ॥ ६ ॥
नीलाञ्जनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ॥ ७ ॥
अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम् ।
सिंहिकागर्भसम्भूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ॥ ८ ॥
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम् ।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् ॥ ९ ॥
इति व्यासमुखोद्गीतं यः पठेत् सुसमाहितः ।
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्नशान्तिर्भविष्यति ॥ १० ॥
नरनारीनृपाणां च भवेद्दुःस्वप्ननाशनम् ।
ऐश्वर्यमतुलं तेषामारोग्यं पुष्टिवर्धनम् ॥ ११ ।|
। । ॥ महर्षिव्यासविरचितं नवग्रहस्तोत्रं सम्पूर्णम् । ।
जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् |
तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ॥ १ ॥
दधिशकतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम् |
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम् ॥ २ ॥
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं तं मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ||
प्रियङ्गुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम् ।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम् ॥ ४ ॥
देवानां च ऋषीणां च गुरुं काञ्चनसंनिभम् ।
बद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् ॥
हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् ।
सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् ॥ ६ ॥
नीलाञ्जनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ॥ ७ ॥
अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम् ।
सिंहिकागर्भसम्भूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ॥ ८ ॥
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम् ।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् ॥ ९ ॥
इति व्यासमुखोद्गीतं यः पठेत् सुसमाहितः ।
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्नशान्तिर्भविष्यति ॥ १० ॥
नरनारीनृपाणां च भवेद्दुःस्वप्ननाशनम् ।
ऐश्वर्यमतुलं तेषामारोग्यं पुष्टिवर्धनम् ॥ ११ ।|
। । ॥ महर्षिव्यासविरचितं नवग्रहस्तोत्रं सम्पूर्णम् । ।
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बहुशोभनम्
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HAR MAHADEV
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