जन्मदिन मनाने कि पारम्परिक विधि / वर्धापन संस्कार
शास्त्रों में जन्मदिन मनाए जाने को वर्धापन संस्कार कहा गया है । जन्म तिथि पर इस संस्कार को सम्पन्न किया जाना उम्र बढ़ाने वाला व जीवन में खुशियां लाने वाला होता है ।
जन्मदिन के दिन किए जाने वाले विधान जन्मतिथि और नक्षत्र से ही जुड़े होते हैं । जन्मदिन के दिन सुबह जल्दी जागना चाहिए । सुबह 4 से 6 के बीच ब्रह्म मुहूर्त होता है । इस समय में जागने से आयु में वृद्धि होती है । मन में गणेश जी का ध्यान करें व आंखे खोलें । सबसे पहले अपनी दोनो हथेलियों का दर्शन करें । नए दिन अच्छे से गुजरे । ये प्रार्थना अपने ईष्ट से करें । धरती माता को प्रणाम करें । तिल के उबटन से नहाएं । नहाकर के साफ व स्वच्छ वस्त्र पहनें । ईश्वर की पूजन करें । प्रथम पूजनीय देवता भगवान गणेश का गंध , पुष्प , अक्षत , धूप , दीप से पूजन करें । लड्डु और दूर्वा समर्पित करें । इस दिन जन्मनक्षत्र का पूजन किया जाता है । जन्मदिन पर अष्टचिरंजीवी का पूजन व स्मरण करना चाहिए । यह पूजन आयु में वृद्धि करता है ।
: अष्टचिरजीवी अश्वथामा , दैत्यराज बलि , वेद व्यास , हनुमान , विभीषण , कृपाचार्य , परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि ये आठ चिरंजीवी हैं जिन्हें अमरत्व प्राप्त है । अष्टचिरंजीवी को प्रणाम करें । इनके लिए तिल से होम करें । अष्टचिरंजीवी मंत्र इस प्रकार है - हनूमांश्च अश्वत्थामा बलिन्यासो विभीषणः । कृपः परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविनः । । सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम् ।
अर्थात् अश्वथामा , दैत्यराज बलि , वेद व्यास , हनुमान , विभीषण , कृपाचार्य , परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि को प्रणाम है । इन नामों के स्मरण रोज सुबह करने से सारी बीमारियां समाप्त दूर होती हैं और मनुष्य 100 वर्ष की आयु को प्राप्त करता है । ॐ कुलदेवताभ्यो नमः मंत्र से कुलदेवता का पूजन करें । अब जन्म नक्षत्र , भगवान गणेश , सूर्यदेव , अष्टचिरंजीवी , षष्ठी देवी की स्थापना चावल की ढेरियों पर करें । नाम मंत्र से पूजन करें । भगवान मार्कण्डेय से दीर्घायु की प्रार्थना करें । तिल और गुड़ के लड्डु तथा दूध अर्पित करें । षष्ठी देवी को दही भात का नैवेद्य अर्पित करें । अब स्वयं तिल - गुड़ के लड्डु तथा दूध का सेवन करें । पूजन के बाद माता - पिता को प्रणाम करें । सभी आदरणीय लोगों को और अपने गुरुजनों को प्रणाम करें । उनसे आर्शीवाद लें । माता - पिता बच्चों को उपहार में सिक्का व रूपया दें । ब्राह्मण भोजन करवाएं । इस दिन जन्मपत्रिका में एक मोली यानी कि लाल रंग का धागा बांधे । और हर साल एक - एक गांठ बांधते जाएं । मासांहारी पदार्थो को इस दिन नहीं खाएं । नेलकटिंग व शेविंग भी नहीं करना चाहिए ।
दीपक बुझाना हिन्दू पुराणों में दीपक की लौ की तुलना मनुष्य के | शरीर में मौजूद ऊर्जा से की गई है । प्रज्वलित दीये का बुझना या स्वयं उसे बुझा देना , आकस्मिक मृत्यु या गंभीर संकट की ओर इशारा करता है । इसलिए जन्मदिन के समय कभी भी दीपक को नहीं बुझाना चाहिए ।
ज्योतिका ज्योति का बुझना हिन्दू शास्त्रों में कहा गया है कि मोमबत्ती तमो गुण वाली होती है , उसे जलाने से कष्ट प्रदान करने वाली नकारात्मक ऊर्जाएं पैदा होती हैं । जिस प्रकार हिन्दू धर्म में ज्योति का बुझना सही नहीं माना गया वैसे ही मोमबत्ती को बुझाना भी नकारात्मकता का प्रतीक है । इसलिए कभी भी जानबूझकर मोमबत्ती को नहीं बुझाना चाहिए ।
मोमबत्ती को जलाना पश्चिमी संस्कृति के अनुसार जन्मदिन के अवसर पर केक पर मोमबत्ती लगाने और फिर बुझाने की प्रक्रिया को अपनाया गया है । जबकि हिन्दू संस्कृति में ना तो केक काटना शुभ है और ना ही मोमबत्ती को बुझाना अच्छा माना जाता है ।
धर्म के विरुद्ध इसी तरह शुभ कार्य के लिए रखे गए केक को चाकू से काटना भी अच्छा नहीं कहा जा सकता । गलती तो खैर इंसान से होती ही है लेकिन जानबूझकर धर्म के विरुद्ध कार्य करना ना तो वर्तमान पीढ़ी के लिए सही है और ना ही भावी पीढी के लिए ।
वर्धापन विधि:
अथ संक्षेपतः प्रयोगः ॥
आयुरभिवृद्ध्यर्थं वर्षवृद्धिकर्म करिष्ये इति संकल्प्य तिलोद्वर्तनपूर्वकं तिलोदकेन सात्वा कृततिलकादिविधिर्गुरुं संपूज्याक्षतपुंजेषु देवताः पूजयेत् ॥ तत्रादौ कुलदे वतायै नम इति कुलदेवतामावाह्य जन्मनक्षत्रं पितरौ प्रजापति भानं विनेशं मा कंडेयं व्यासं जामदग्न्यं रामम् अश्वत्थामानं कृपं बलिं प्रह्लादं हनूमंतं विभी षणं षष्ठीच नाम्नवावाह्य पूजयेत् ॥ षष्ठयै दधिभक्तनैवेद्यः पूजांते प्रार्थना च ॥ " चिरंजीवी यथा त्वं भो भविष्यामि तथा मुने ॥ रूपवान्वित्तसंश्चैव श्रिया युक्त श्च सर्वदा ॥ मार्कडेय नमस्तेस्तु सप्तकल्पालजीवन । आयुरारोग्यसिद्धयर्थ प्रसीद भगवन् मुने ॥ चिरंजीवी यथा त्वं तु मुनीनां प्रवरो द्विज । । कुरुप्य मुनिशार्दूल तथा मां चिरजीविनम् ॥ मार्कंडेय महाभाग सप्तकल्पांतजीवन ॥ आयुरारोग्य सिद्ध्यर्थमस्माकं वरदो भव ॥ " अथ षष्टीप्रार्थना ॥ " जय देवि जगन्मातर्जगदानंदकारिण ॥ प्रसीद मम कल्याणि नमस्ते षष्ठिंदवते ॥ त्रैलोक्ये यानि भूता नि स्थावराणि चराणि च ॥ ब्रह्मविष्णुशिवैः सार्धं रक्षा कुर्वतु तानि मे ॥ " तत स्तिलगुडमिश्र पयः पिबेत् ॥ तत्र मंत्रः ॥ “ सतिलं गुडसंमिश्रमजल्यर्धमितं पयः ॥ मार्कडेयादरं लब्ध्वा पिवाम्यायुर्विवृद्धये ॥ ” क्वचित्पूजितषोडशदेवताभ्यो नाना प्रत्येकमष्टाविंशतिसंख्यतिलहोम उक्तः ॥ ततो विप्रभोजनम् ॥ तहिने नि यमाः ॥ " खंडनं नखकेशानां मैथुनाध्वगमौ तथा ॥ आमिषं कलहं हिंसां वर्ष वृद्धौ विवर्जयेत् ॥ मृते जन्मनि संक्रांती आहे जन्मदिने तथा ॥ अस्पृश्यस्पर्शने चैव न स्नायादुष्णवारिणा ॥ "