Wednesday, 13 May 2020

जन्मदिन मनाने कि पारम्परिक विधि / वर्धापन संस्कार



शास्त्रों में जन्मदिन मनाए जाने को वर्धापन संस्कार कहा गया है । जन्म तिथि पर इस संस्कार को सम्पन्न किया जाना उम्र बढ़ाने वाला व जीवन में खुशियां लाने वाला होता है ।
जन्मदिन के दिन किए जाने वाले विधान जन्मतिथि और नक्षत्र से ही जुड़े होते हैं । जन्मदिन के दिन सुबह जल्दी जागना चाहिए । सुबह 4 से 6 के बीच ब्रह्म मुहूर्त होता है । इस समय में जागने से आयु में वृद्धि होती है । मन में गणेश जी का ध्यान करें व आंखे खोलें । सबसे पहले अपनी दोनो हथेलियों का दर्शन करें । नए दिन अच्छे से गुजरे । ये प्रार्थना अपने ईष्ट से करें । धरती माता को प्रणाम करें । तिल के उबटन से नहाएं । नहाकर के साफ व स्वच्छ वस्त्र पहनें । ईश्वर की पूजन करें । प्रथम पूजनीय देवता भगवान गणेश का गंध , पुष्प , अक्षत , धूप , दीप से पूजन करें । लड्डु और दूर्वा समर्पित करें । इस दिन जन्मनक्षत्र का पूजन किया जाता है । जन्मदिन पर अष्टचिरंजीवी का पूजन व स्मरण करना चाहिए । यह पूजन आयु में वृद्धि करता है ।
: अष्टचिरजीवी अश्वथामा , दैत्यराज बलि , वेद व्यास , हनुमान , विभीषण , कृपाचार्य , परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि ये आठ चिरंजीवी हैं जिन्हें अमरत्व प्राप्त है । अष्टचिरंजीवी को प्रणाम करें । इनके लिए तिल से होम करें । अष्टचिरंजीवी मंत्र इस प्रकार है - हनूमांश्च अश्वत्थामा बलिन्यासो विभीषणः । कृपः परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविनः । । सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम् ।
अर्थात् अश्वथामा , दैत्यराज बलि , वेद व्यास , हनुमान , विभीषण , कृपाचार्य , परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि को प्रणाम है । इन नामों के स्मरण रोज सुबह करने से सारी बीमारियां समाप्त दूर होती हैं और मनुष्य 100 वर्ष की आयु को प्राप्त करता है । ॐ कुलदेवताभ्यो नमः मंत्र से कुलदेवता का पूजन करें । अब जन्म नक्षत्र , भगवान गणेश , सूर्यदेव , अष्टचिरंजीवी , षष्ठी देवी की स्थापना चावल की ढेरियों पर करें । नाम मंत्र से पूजन करें । भगवान मार्कण्डेय से दीर्घायु की प्रार्थना करें । तिल और गुड़ के लड्डु तथा दूध अर्पित करें । षष्ठी देवी को दही भात का नैवेद्य अर्पित करें । अब स्वयं तिल - गुड़ के लड्डु तथा दूध का सेवन करें । पूजन के बाद माता - पिता को प्रणाम करें । सभी आदरणीय लोगों को और अपने गुरुजनों को प्रणाम करें । उनसे आर्शीवाद लें । माता - पिता बच्चों को उपहार में सिक्का व रूपया दें । ब्राह्मण भोजन करवाएं । इस दिन जन्मपत्रिका में एक मोली यानी कि लाल रंग का धागा बांधे । और हर साल एक - एक गांठ बांधते जाएं । मासांहारी पदार्थो को इस दिन नहीं खाएं । नेलकटिंग व शेविंग भी नहीं करना चाहिए ।
दीपक बुझाना हिन्दू पुराणों में दीपक की लौ की तुलना मनुष्य के | शरीर में मौजूद ऊर्जा से की गई है । प्रज्वलित दीये का बुझना या स्वयं उसे बुझा देना , आकस्मिक मृत्यु या गंभीर संकट की ओर इशारा करता है । इसलिए जन्मदिन के समय कभी भी दीपक को नहीं बुझाना चाहिए ।

ज्योतिका ज्योति का बुझना हिन्दू शास्त्रों में कहा गया है कि मोमबत्ती तमो गुण वाली होती है , उसे जलाने से कष्ट प्रदान करने वाली नकारात्मक ऊर्जाएं पैदा होती हैं । जिस प्रकार हिन्दू धर्म में ज्योति का बुझना सही नहीं माना गया वैसे ही मोमबत्ती को बुझाना भी नकारात्मकता का प्रतीक है । इसलिए कभी भी जानबूझकर मोमबत्ती को नहीं बुझाना चाहिए ।

मोमबत्ती को जलाना पश्चिमी संस्कृति के अनुसार जन्मदिन के अवसर पर केक पर मोमबत्ती लगाने और फिर बुझाने की प्रक्रिया को अपनाया गया है । जबकि हिन्दू संस्कृति में ना तो केक काटना शुभ है और ना ही मोमबत्ती को बुझाना अच्छा माना जाता है ।

धर्म के विरुद्ध इसी तरह शुभ कार्य के लिए रखे गए केक को चाकू से काटना भी अच्छा नहीं कहा जा सकता । गलती तो खैर इंसान से होती ही है लेकिन जानबूझकर धर्म के विरुद्ध कार्य करना ना तो वर्तमान पीढ़ी के लिए सही है और ना ही भावी पीढी के लिए ।
 वर्धापन विधि:

अथ संक्षेपतः प्रयोगः ॥ 
आयुरभिवृद्ध्यर्थं वर्षवृद्धिकर्म करिष्ये इति संकल्प्य तिलोद्वर्तनपूर्वकं तिलोदकेन सात्वा कृततिलकादिविधिर्गुरुं संपूज्याक्षतपुंजेषु देवताः पूजयेत् ॥ तत्रादौ कुलदे वतायै नम इति कुलदेवतामावाह्य जन्मनक्षत्रं पितरौ प्रजापति भानं विनेशं मा कंडेयं व्यासं जामदग्न्यं रामम् अश्वत्थामानं कृपं बलिं प्रह्लादं हनूमंतं विभी षणं षष्ठीच नाम्नवावाह्य पूजयेत् ॥ षष्ठयै दधिभक्तनैवेद्यः पूजांते प्रार्थना च ॥ " चिरंजीवी यथा त्वं भो भविष्यामि तथा मुने ॥ रूपवान्वित्तसंश्चैव श्रिया युक्त श्च सर्वदा ॥ मार्कडेय नमस्तेस्तु सप्तकल्पालजीवन । आयुरारोग्यसिद्धयर्थ प्रसीद भगवन् मुने ॥ चिरंजीवी यथा त्वं तु मुनीनां प्रवरो द्विज । । कुरुप्य मुनिशार्दूल तथा मां चिरजीविनम् ॥ मार्कंडेय महाभाग सप्तकल्पांतजीवन ॥ आयुरारोग्य सिद्ध्यर्थमस्माकं वरदो भव ॥ " अथ षष्टीप्रार्थना ॥ " जय देवि जगन्मातर्जगदानंदकारिण ॥ प्रसीद मम कल्याणि नमस्ते षष्ठिंदवते ॥ त्रैलोक्ये यानि भूता नि स्थावराणि चराणि च ॥ ब्रह्मविष्णुशिवैः सार्धं रक्षा कुर्वतु तानि मे ॥ " तत स्तिलगुडमिश्र पयः पिबेत् ॥ तत्र मंत्रः ॥ “ सतिलं गुडसंमिश्रमजल्यर्धमितं पयः ॥ मार्कडेयादरं लब्ध्वा पिवाम्यायुर्विवृद्धये ॥ ” क्वचित्पूजितषोडशदेवताभ्यो नाना प्रत्येकमष्टाविंशतिसंख्यतिलहोम उक्तः ॥ ततो विप्रभोजनम् ॥ तहिने नि यमाः ॥ " खंडनं नखकेशानां मैथुनाध्वगमौ तथा ॥ आमिषं कलहं हिंसां वर्ष वृद्धौ विवर्जयेत् ॥ मृते जन्मनि संक्रांती आहे जन्मदिने तथा ॥ अस्पृश्यस्पर्शने चैव न स्नायादुष्णवारिणा ॥ "

Thursday, 7 May 2020

| प्रात: उठ कर करे ये नित्य कार्य |



प्रातः जागरणके पश्चात् स्नानसे पूर्वके कृत्य प्रातःकाल उठनेके बाद स्नानसे पूर्व जो आवश्यक विभिन्न कृत्य है . शास्त्रोंने उनके लिये भी सुनियोजित विधि - विधान बताया है । गृहस्थको अपने नित्य - कर्मोकि अन्तर्गत स्नानसे पूर्वके कृत्य भी शास्त्र - निर्दिष्ट पद्धतिसे ही करने चाहिये ; क्योंकि तभी वह अग्रिम षट् - कर्मकि करनेका अधिकारी होता है । अतएव यहाँपर क्रमशः जागरण - कृत्य एवं स्नान - पूर्व कृत्योंका निरूपण किया जा रहा है ।

 ब्राह्म - मुहूर्तमें जागरण - 

सूर्योदयसे चार घड़ी ( लगभग डेढ़ घंटे ) पूर्व ब्राह्ममुहूर्तमें ही जग जाना चाहिये । इस समय सोना शास्त्रमें निषिद्ध है ।

 करावलोकन - 

आँखोंके खुलते ही दोनों हाथोंकी हथेलियों देखते हुए निम्नलिखित श्लोकका पाठ करे 
कराग्रे वसते लक्ष्मी : करमध्ये सरस्वती । 
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम् ॥ ( आचारप्रदीप ) ' 

हाथके अग्रभागमें लक्ष्मी , हाथके मध्यमें सरस्वती और हाथके मूलभागमें ब्रह्माजी निवास करते हैं , अतः प्रातःकाल दोनों हाथोंका अवलोकन करना चाहिये । ' -
 ब्राह्म मुहर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी । तां करोति द्विजो मोहात् पादकृच्छ्रेण शुद्ध्यति ।
ब्राह्ममहर्तकी निद्रा पुण्यका नाश करनेवाली है । उस समय जो कोई भी शयन करता है । उसे इस पापसे छुटकारा पानेके लिये पादकच्छ नामक ( व्रत ) प्रायश्चित्त करना चाहिये । ( रोगकी अवस्थामें या कीर्तन आदि शास्त्रविहित कार्योक कारण इस समय यदि नींद आ जाय तो उसके लिये प्रायश्चित्तकी आवश्यकता नहीं होती ) ।



भूमि - वन्दना -

 शय्यासे उठकर पृथ्वीपर पैर रखनेके पूर्व पृथ्वी माताका अभिवादन करे और उनपर पैर रखनेकी विवशताके लिये उनसे क्षमा माँगते हुए निम्न श्लोकका पाठ करे 
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डिते । 
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे । । 

' समुद्ररूपी वस्त्रोंको धारण करनेवाली , पर्वतरूपस्तनोंसे मण्डित भगवान् विष्णुकी पत्नी पृथ्वीदेवि ! आप मेरे पाद - स्पर्शको क्षमा करें । 
मङ्गल - दर्शन - 

तत्पश्चात् गोरोचन , चन्दन , सुवर्ण , शङ्ख , मृदंग , दर्पण , मणि आदि माङ्गलिक वस्तुओंका दर्शन करे तथा गुरु , अग्नि और सूर्यको नमस्कार करे । 

_ _ _ माता , पिता , गुरु एवं ईश्वरका अभिवादन - पैर , हाथ - मुख धोकर कुल्ला करे । इसके बाद रातका वस्त्र बदलकर आचमन करे ।

                                                       जुगल व्यास

Sunday, 3 May 2020

गृहस्थ के नित्य कर्म





अथोच्यते गृहस्थस्य नित्यकर्म यथाविधि ।
 यत्कृत्वानृण्यमाप्नोति दैवात् पैत्र्याच्च मानुषात् ॥ ( आश्वलायन ) 

शास्त्रविधिके अनुसार गृहस्थके नित्यकर्मका निरूपण किया जाता है , जिसे करके मनुष्य देव - सम्बन्धी , पितृ - सम्बन्धी और मनुष्य - सम्बन्धी तीनों ऋणोंसे मुक्त हो जाता है । 

' जायमानो वै ब्राह्मणस्त्रिभित्रंणवा जायते ' ( तै० सं० ६ । ३ । १० । ५ )

 के अनुसार मनुष्य जन्म लेते ही तीन ऋणोंवाला हो जाता है । उससे अनृण होनेके लिये शास्त्रोंने नित्यकर्मका विधान किया है । नित्यकर्ममें शारीरिक शुद्धि , सन्ध्यावन्दन , तर्पण और देव - पूजन प्रभृति शास्त्रनिर्दिष्ट कर्म आते हैं । इनमें मुख्य निम्नलिखित छः कर्म बताये गये हैं

सन्ध्या स्नानं जपश्चैव देवतानां च पूजनम् ।
 वैश्वदेवं तथाऽऽतिथ्यं षट् कर्माणि दिने दिने । 

मनुष्यको स्नान , सन्ध्या , जप , देवपूजन , बलिवैश्वदेव और अतिथि सत्कार - ये छः कर्म प्रतिदिन करने चाहिये ।
 १ - यहाँ स्नान शब्द स्नान - पूर्वके सभी कृत्योंके लिये उपलक्षक - रूपमें निर्दिष्ट है । पाठक्रमादर्थक्रमो बलीयान् ' के आधारपर प्रथम स्नानके पश्चात् संध्या समझनी चाहिये ।

                                                                                       jugal vyas

Saturday, 2 May 2020

राशियो का स्वरूप |


              
अथ द्वादशराशिस्वरूपमाह -

तत्रादौ मेषस्य

पुमांश्चरोऽग्निः सुदृढश्चतुष्पाद्रक्तोष्णपित्तोऽतिरवोऽद्रिरुमः
 पीतो दिनं प्राग्विषमोदयोऽल्पसङ्गप्रजो रूक्ष - नृपः समोऽजः

मेषराशि , पुरुष , चरसंज्ञक , अग्नितत्त्व , दाङ्ग , चतुष्पद , रक्तवर्ण गर्मस्वभाववाला , पित्तात्मक , अत्यन्त शब्द करने वाला ,पर्वतचारा, पीतवर्ण, दिनबली,पूर्व दिशा का स्वामी ,विषमोदय, सङ्ग में थोड़ेसन्ता कान्तिरहित, सत्रिय जाति , समाङ्ग ( तो छोटा तो बहुत बड़ा ) ऐसा है " सङ्ग में थोड़े सन्तान वाला है |

अथ वृषराशिस्वरूपमाह

वृषः स्थिरः स्त्री-क्षिति-शीत-रूक्षी याम्येद सुभू - र्वायु  निशा चतुष्पात् |
श्वेतोऽतिशब्दो विषमोदयश्च मध्यप्रजा - सङ्ग  - शुभाऽपि वैश्यः

 वृषराशि , स्थिरसंज्ञक , स्त्रीराशि , पृथ्वीतत्व , टेण्डी प्रकृति , विवर्ण , दक्षिणदिशाका स्वामी , अच्छी जमीनमें चलने वाला , वातारमक , रात्रिम बली , चतुष्पद , स्वच्छवर्ण , जोर से शब्द करनेवाला विषम उदय  वाला मामूली प्रजा सता वाला , शुभराशि , वैश्यजाति है



अथ मिथुनराशिस्वरूपमाह

 प्रत्यक् समीरः शुकमा द्विपान्ना द्वन्द्वं द्विमूनिर्विषमोदयोष्णः
मध्यप्रजासङ्ग - वनस्थ शूद्रो दीर्घस्वनः स्निग्ध - दिने तथाग्रः

 मिथुनराशि , पश्चिमदिशा का स्वामी है , और वायुताव , शुम्गाके समान हरित वर्ण , द्विपद , पुरुषराशि , द्विःस्वभावसंज्ञक , विषमोदय , गर्मप्रकृति , साधारण है सङ्ग में प्रजा , और वनचर , शूदजाति , बड़े जोरसे शब्द करनेवाला , चिकनी कान्तिवाला , दिनमें बली ,और क्रूरसंज्ञक है |


अथ कर्क राशिस्वरूपमाह

बहुप्रजासङ्गपदः कुलीरश्चरोऽङ्गना पाटल - हीनशब्दः
 शुभः कफी स्निग्ध - जलाम्बुचारी समोदयो विप्र - निशोत्तरेशः

 कर्कराशि - बहुत प्रजा संग वाला , बहुत चरण वाला , चरसंज्ञक , स्त्री राशि , पाटल ( थोड़ा लाल वर्ण ) , मन्दस्वर , शुभराशि , कफारमक , चिकना , जलतरव , जलचारी , समोदय , ब्राह्मणवर्ण , रात्रिवली , उत्तरदिशा का स्वामी , ऐसा है


अथ सिंहराशिस्वरूपमाह

पुमान् स्थिरोऽग्निर्दिन - पीत - लक्षः पित्तोष्ण - पूर्वेश - दृढश्चतुष्पात्  
समोदयो - दोघरवोऽल्पसङ्गप्रजो हरिः शैल - नृपोग्र - धूम्रः

 सिंह राशि , स्थिरसंज्ञक , अग्नितत्व , दिनबली , पीतवर्ण , कान्तिरहित , पित्तप्रकृति , गर्मस्वभाव , पूर्वदिशा का स्वामी , दृढाङ्ग , चतुष्पाद , समोदय , जोर से शन्द करने वाला , थोड़ी प्रजा है सङ्ग में जिसको ऐसा , और पर्वतचारी , क्षत्रियजाति , करसंज्ञक , धूम्रवर्ण ऐसा है  

अथ कन्याराशिस्वरूपमाह

पाण्डुर्द्विपात् स्त्री द्वितनुर्यमाशा निशा मरुच्छीत - समोदयमा
कन्याऽर्धशब्दा शुभभूमिवश्या रूताऽल्पसंगप्रसवा शुभा  


 कन्याराशि पाण्डु ( फीका पीला ) वर्ण , सीराशि , द्विःस्वभावसंज्ञक , दक्षिणदिशा का स्वामी , रात्रिबली , वायुतत्व , शीतलस्वभाव , समोदय , भूमिचारी , थोड़ा शब्द करने वाला , पवित्र भूमिचारी , शुभराशि , वैश्यवर्ण , रूक्ष ( कान्ति रहित ) , थोड़ी सन्तान वाली , शुभराशि है  


अथ तुलाराशिस्वरूपमाह

पुमांश्चरश्चित्र - समोदयोष्णः प्रत्यङ मरुत् स्निग्ध - रवोन - वन्यः
स्वल्पप्रजासङ्गम - शूद्र उग्रस्तुलो धुवीय द्विपदः समानः  

 तुलाराशि पुरुष , चरसंज्ञक , चित्रवर्ण , समोदय , गर्मप्रकृति वाला , पश्चिम दिशा का स्वामी , वायुतत्व , चिकना , थोड़ा शब्द वाला , वनचर , थोड़ी प्रजा सङ्ग में है जिसे ऐसा , शूद्र वर्ण , कर राशि , दिनबली , द्विपद , समान ( तो बहुत बड़ा तो बहुत छोटा ) ऐसा है  


अथ वृश्चिकराशिस्वरूपमाह -

स्थिरः सितः स्त्री जलमुत्तरेशो निशारवोनो बहुपात् कफी  
समोदयो वारिचरोऽतिसङ्गप्रजः शुभः स्निग्धतनुद्धिजोऽलिः  

 वृश्चिकराशि - स्थिरसंज्ञक , स्वच्छवर्ण , स्त्रीराशि , जलतत्त्व , उत्तर दिशा का स्वामी , रात्रिबली , थोड़ा शब्द वाला , अधिक पांव वाला , कफात्मक , समोदय जल चर , बहुत प्रजा है साथ जिसे ऐसा , शुभराशि , चिकनी कान्ति वाला , बाहर वर्ण ऐसा है |


अथ धनराशिस्वरूपमाह -

ना स्वर्णभा शैल - समोदयोऽतिशब्दो दिनं प्राग दृढ - रूक्ष - पीतः
राजोपण - पित्तो धनुररूपसूतिसंगो विभूतिति पदोऽग्निरुनः  

 धनु राशि , पुरुष है , सोने के समान वर्ण वाला है पर्वतचारी , समोदय जादे शब्द करने वाला , दिन में बली , पूर्व दिशा का स्वामी , मजत शरीर है , कान रहित है पीला वर्ण है क्षत्रिय जाति , गर्म स्वभाव वाला , थोड़ी सन्तान वाला द्विःस्वभाव , और अमितत्व , फर संज्ञक है  


अथ मकरराशिस्वरूपमाह

मृगश्चरः माऽर्धरयो यमाशा - स्त्री - पिङ्ग - रूक्षः शुभ - मि - शीतः
स्वल्पप्रजासङ्ग - समीर - रात्रिरादौ चतुष्पाद् विषमोदयो विट्

मकरराशि - चरसंज्ञकः , भूमितरव , थोड़े शब्द वाला , दक्षिण दिशा का स्वामी , स्त्री राशि , पीला वर्ण , कास्ति रहित , शुभराशि , भूमिचारी , शीतलस्वभाव वाला , थोड़ी है प्रजा संग में जिसको ऐसा , पायुतश्व , रात्रि बली , पूर्वार्ध में चतुष्पा ( उत्तराध द्विपद ) विषमोदय , वश्यवर्ण ऐसा होता है  


अथ कुम्भराशिस्थरूपमाह

कुम्भोऽपदो ना दिन - मध्यसङ्गप्रसूः स्थिरः कषुर - वन्य - वायुः  
स्निग्धोष्ण - खण्डस्वर - तुल्यथातुः शद्रः प्रतीची विषमोदयोगः

कुम्भराशि चरण हीन है , पुरुषराशि , दिनबली , मामूली थोड़ी है सजा में प्रजा जिसको ऐसा , और स्थिर संज्ञक , चित्रवर्ण , वनचर , वायुतत्व , चिकनी कान्ति , गर्मस्वभाव का , थोड़ा शब्द वाला , वात पित्त कफ तीनों समान वाला , शूद्र वर्ण , पश्चिमदिशा का स्वामी , विषमोदय , क्रूरसंज्ञक , ऐसा है  


अथ मीनराशिस्वरूपमाह

मीनोऽपदः स्त्री कफ - वारि - रात्रि - निःशब्द - बभ्रद्वितनुर्जलस्थः
स्निग्धोऽतिसङ्गप्रसोऽपि विप्रः शुभोत्तराशेड् विषमोदयश्च |

मीनराशि चरणरहित है , स्त्री राशि , कफात्मक , जलतत्व , रात्रिबली , शब्दहीन , न्यौले के समान भूरा वर्ण , द्विःस्वभाव , जलचर , चिकना और अधिक सन्तान युक्त , ब्राह्मण वर्ण , शुभराशि , उत्तरदिशा का स्वामी , विषमोदय , ऐसा है


                                                                       जुगल व्यास