Saturday, 11 July 2020

शिव-पूजनके लिये विहित पत्र-पुष्प।सहस्र गुना फल देने वाले पुष्प।भविष्य पु...


शिव - पूजनके लिये विहित पत्र - पुष्प 

भगवान् शंकरपर फूल चढ़ानेका बहुत अधिक महत्त्व है । बतलाया जाता है कि
तपःशीलगुणोपेते विप्रे वेदस्य दत्त्वा सुवर्णस्य शतं तत्फलं कुसुमस्य च ॥ ( वीरमित्रोदय)

तपःशील सर्वगुणसम्पन्न वेदमें निष्णात किसी ब्राह्मणको में सुवर्ण दान करनेपर जो फल प्राप्त होता है , वह भगवान् शंकरपर सौ फूल चढ़ा देनेसे प्राप्त हो जाता है ।

कौन - कौनसे पत्र - पुष्प शिवके लिये विहित है और कौन - कौन निषिद्ध हैं , इनकी जानकारी अपेक्षित है । अतः उनका उल्लेख यहाँ किया जाता है
विष्णोर्यानीह चोक्तानि पुष्पाणि च पत्रिकाः । केतकीपुष्पमेकं तु विना तान्यखिलान्यपि । शस्तान्येव सुरश्रेष्ठ शंकराराधनाय हि ॥ ( नारद )
पहली बात यह है कि भगवान् विष्णुके लिये जो - जो पत्र और पुष्प विहित हैं , वे सब भगवान् शंकरपर भी चढ़ाये जाते हैं । केवल केतकी - केवड़ेका निषेध है ।
शास्त्रोंने कुछ फूलोंके चढ़ानेसे मिलनेवाले फलका तारतम्य बतलाया है , जैसे

सर्वासा पुष्पजातीनां नीलमुत्पलम् ॥ ( वीरमित्रोदय , पूजाप्रकाश ) 

करवीरसमा ज्ञेया जातीबकुलपाटलाः । श्वेतमन्दारकुसुमं सितपा शमीपुष्पं बृहत्याश्च कुसुम तुल्यमुच्यते । नागचम्पकपुन्नागौ धत्तूरकसमौ स्मृतौ ॥ 

३ - सत्यं सत्यं पुनः सत्यं शिवं स्पृष्ट्वेदमुच्यते । 

बकपुष्पेण चैकेन शैवमर्चनमुत्तमम् ।।

दस सुवर्ण - मापके बराबर सुवर्ण - दानका फल

एक आकके फूलको चढ़ानेसे मिल जाता है ।
हजार आकके फूलोंकी अपेक्षा एक कनेरका फूल , हजार कनेरके फूलोंके चढ़ानेकी अपेक्षा एक बिल्व -

बिल्वपत्रसे फल मिल जाता है और हजार बिल्वपत्रोंकी अपेक्षा एक गूमाफूल ( द्रोण - पुष्प ) होता है । इस तरह हजार गूमासे बढ़कर एक चिचिड़ा , हजार चिचिड़ों ( अपामार्गों ) से बढ़कर एक कुशका फूल , हजार कुश - पुष्पोंसे बढ़कर एक शमीका पत्ता , हजार शमीके पत्तोंसे बढ़कर एक नीलकमल , हजार नीलकमलोंसे बढ़कर एक धतूरा , हजार धतूरोंसे बढ़कर एक शमीका फूल होता है । अन्तमें बतलाया है कि समस्त फूलोंकी जातियोंमें सबसे बढ़कर नीलकमल होता है । भगवान् व्यासने कनेरकी कोटिमें चमेली , मौलसिरी , पाटला मदार , श्वेतकमल , शमीके फूल और बड़ी भटकटैयाको रखा है । इसी तरह धतूरेकी कोटिमें नागचम्पा और पुंनागको माना है । शास्त्रोंने भगवान् शंकरकी पूजामें मौलसिरी ( बक - बकुल ) के फूलको ही अधिक महत्त्व दिया है ।
भविष्यपुराणने भगवान् शंकरपर चढ़ानेयोग्य और भी फूलोंके नाम गिनाये हैं
( वीर मिल , फूल ) ४- पाटला ' का अर्थ ' पाढर ' होता है । कुछ लोग इसका अर्थ ' गुलाब ' बतलाते हैं ।
करवीर ( कनेर ) , मौलसिरी , धतूरा , पाढर , बड़ी कटेरी , -
पूजाप्रकाश कुरैया , कास , मन्दार , अपराजिता , शमीका फूल , कुब्जक , शंखपुष्पी चिचिड़ा , कमल , चमेली , नागचम्पा , चम्पा , खस , तगर , नागकेसर किंकिरात ( करंटक अर्थात् पीले फूलवाली कटसरैया ) , गूमा , शीशम , गूलर , जयन्ती , बेला , पलाश , बेलपत्ता , कुसुम्भ - पुष्प , कुङ्कुम ' केसर , नीलकमल और लाल कमल । जल एवं स्थलमें उत्पन्न जितने सुगन्धित फूल हैं , सभी भगवान् शंकरको प्रिय हैं ।
पारगे । १ - विहितप्रतिषिद्वैस्तु विहितालाभतोऽर्चयेत् । २ - एक सुवर्ण सोलह माशा या एक कर्ष । 

Tuesday, 7 July 2020

नवनाग स्तुति।कालसर्प दोष दुर करने वाला।

॥ नवनागस्तुतिः ॥ 

अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम् । 
शङ्खपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा ॥१ ॥

 एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम् । 
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रातः काले विशेषतः ॥२ ॥

 विषाद्भयं तस्य नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत् ॥
               ॥ इति ॥

Monday, 6 July 2020

प्रातःकालीन उठ कर करे इस स्तुति का पाठ शिव स्तुति: "सद्धर्मचिन्तामणौ"

 ।।  अथ  शिवस्तुतिः ।।

 प्रातः स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं 
गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम् । 
खट्वाड़्गशूलवरदाभयहस्तमीशं 
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥ १।।

प्रातर्नमामि गिरिशं गिरिजार्धदेहं सर्गस्थितिप्रलयकारणमादिदेवम् ।
 विश्वेश्वरं विजितविश्वमनोभिरामं 
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥ २।।

प्रातर्भजामि शिवमेकमनन्तमाद्यं
 वेदान्तवेद्यमनघं पुरुषं महान्तम् । 
नामादिभेदरहितं षडभावशून्यं
 संसाररोगहरमौषधमदितीयम् ।।३।।

 प्रातः समुत्थाय शिवं विचिन्त्य श्लोकत्रयं येऽनुदिनं पठन्ति ।
 ते दुःखजातं बहुजन्मसञ्चितं हित्वा पदं यान्ति तदेव शम्भोः ।

।।इति शिवस्तुतिः  सद्धर्मचिन्तामणौ।।

Thursday, 2 July 2020

।।मंगल स्त्रोत्रम् ।। mangal stotram


          ॥ मंगलस्तोत्रम् ॥

मंगलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः ।
स्थिरासनो महाकायः सर्वकर्मविरोधकः ॥ १ ॥

लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः ।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः ॥ २ ॥

अंगारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः ।
वृष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः ॥ ३ ॥

एतानि कुजनामानि नित्यं यः श्रद्धया पठेत् ।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात् ॥ ४ ॥

धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ॥ ५ ॥

स्तोत्रमंगारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः ।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित् ॥ ६ ॥

अंगारकमहाभाग भगवन्भक्तवत्सल ।
त्वां नमामि ममाशेषमणमाश विनाशय ॥ ७ ॥

ऋणरोगादिदारिद्र्यं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः । 
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥ ८ ॥

अतिवक्र दुराराध्य भोगमुक्त जितात्मनः ।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥ ९ ॥

विरिञ्चिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा ।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः ॥ १० ॥

पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः । 
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः ॥ ११ ॥

एभिर्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम् ।
महतीं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा ॥ १२ ॥             

                             ॥ इति ॥ 
                                                    जुगल व्यास