गणपति लक्ष्मी स्तोत्र | इसके पाठ से लक्ष्मीजी घर और शरीर को छोड़कर कभी नहीं जाती | Ganesh lakshmi |
गणपति लक्ष्मी स्तोत्र | इसके पाठ से लक्ष्मीजी घर और शरीर को छोड़कर कभी नहीं जाती | Ganesh lakshmi |
गणेश लक्ष्मी श्रीगणपतिस्तोत्रम् हिंदी अर्थ सहित
ॐ नमो विघ्नराजाय सर्वसौख्यप्रदायिने ।
दुष्टारिष्टविनाशाय पराय परमात्मने ॥ १॥
सम्पूर्ण सौख्य प्रदान करने वाले सच्चिदानन्द स्वरुप विघ्नराज गणेश को नमस्कार है, जो दुष्ट अरिष्टग्रहों का नाश करने वाले परात्पर परमात्मा हैं ।
लम्बोदरं महावीर्यं नागयज्ञोपशोभितम् ।
अर्धचन्द्रधरं देवं विघ्नव्यूहविनाशनम् ॥ २॥
जो महापराक्रमी, लम्बोदर, सर्पमय, यज्ञोपवीत से सुशोभित अर्धचन्द्रधारी और विघ्न व्यूह का विनाश करने वाले हैं, उन गणपति की मैं वंदना करता हूँ ।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः हेरम्बाय नमो नमः ।
सर्वसिद्धिप्रदोऽसि त्वं सिद्धिबुद्धिप्रदो भव ॥ ३॥
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः हेरम्ब को नमस्कार हैं । भगवान् आप सब सिद्धियों के दाता हैं, आप हमारे लिए सिद्धि – बुद्धिदायक हैं ।
चिन्तितार्थप्रदस्त्वं हि सततं मोदकप्रियः ।
सिन्दूरारुणवस्त्रैश्च पूजितो वरदायकः ॥ ४॥
आपको सदा ही मोदक प्रिय है, आप मन के द्वारा चिन्तित अर्थ को देनेवाले हैं, सिन्दूर और लाल वस्त्र से पूजित होकर आप सदा वर प्रदान करते हैं।
इदं गणपतिस्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः ।
तस्य देहं च गेहं च स्वयं लक्ष्मीर्न मुञ्चति ॥ ५॥
जो मनुष्य भक्तिभाव से युक्त हो एवं इस गणपति स्तोत्र का पाठ करता है, स्वयं लक्ष्मी उसके देह – गेह को नहीं छोड़ती।
इति श्री गणेश लक्ष्मी श्रीगणपतिस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ।
गणेश लक्ष्मी श्रीगणपतिस्तोत्रम्
श्री गणेशाय नमः ।
ॐ नमो विघ्नराजाय सर्वसौख्यप्रदायिने ।
दुष्टारिष्टविनाशाय पराय परमात्मने ॥ १॥
लम्बोदरं महावीर्यं नागयज्ञोपशोभितम् ।
अर्धचन्द्रधरं देवं विघ्नव्यूहविनाशनम् ॥ २॥
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः हेरम्बाय नमो नमः ।
सर्वसिद्धिप्रदोऽसि त्वं सिद्धिबुद्धिप्रदो भव ॥ ३॥
चिन्तितार्थप्रदस्त्वं हि सततं मोदकप्रियः ।
सिन्दूरारुणवस्त्रैश्च पूजितो वरदायकः ॥ ४॥
इदं गणपतिस्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः ।
तस्य देहं च गेहं च स्वयं लक्ष्मीर्न मुञ्चति ॥ ५॥
इति श्रीगणपतिस्तोत्रम् (२) सम्पूर्णम् ।
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