Friday, 24 April 2020

आइए जाने अक्षय तृतीया के पूजा मुहूर्त,महत्व,सरल उपाय और कथा





अक्षय तृतीया पूजा मुहूर्त :     05 : 44 : 24 से 12 : 19 : 02तक अवधि : 6 घंटे 34 मिनट

अक्षय तृतीया की तारीख व मुहूर्त आइए जानते हैं कि अक्षय तृतीया  वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षय तृतीया या आखा तीज कहते हैं । यह सनातन धर्मियों का प्रधान त्यौहार है । इस दिन दिए हुए दान और किये हुए स्नान , यज्ञ , जप आदि सभी कर्मों का फल अनन्त और अक्षय ( जिसका क्षय या नाश न हो ) होता है , इसलिए इस त्यौहार का नाम अक्षय तृतीया रखा गया है ।



अक्षय तृतीया महत्व
1 . अक्षय तृतीया का दिन साल के उन साढ़े तीन मुहूर्त में से एक है जो सबसे शुभ माने जाते हैं । इस दिन अधिकांश शुभ कार्य किए जा सकते हैं ।

2 . इस दिन गंगा स्नान करने का भी बड़ा भारी माहात्म्य बताया गया है । जो मनुष्य इस दिन गंगा स्नान करता है, वह निश्चय ही सारे पापों से मुक्त हो जाता है ।

3 . इस दिन पितृ श्राद्ध करने का भी विधान है । जौ , गेहूँ , चने , सत्तू , दही - चावल , दूध से बने पदार्थ आदि सामग्री का दान अपने पितरों ( पूर्वजों ) के नाम से करके किसी ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए ।

4 . इस दिन किसी तीर्थ स्थान पर अपने पितरों के नाम से श्राद्ध व तर्पण करना बहुत शुभ होता है ।

5 . कुछ लोग यह भी मानते हैं कि सोना ख़रीदना इस दिन शुभ होता है ।

6 . इसी तिथि को परशुराम व हयग्रीव अवतार हुए थे ।

7 . त्रेतायुग का प्रांरभ भी इसी तिथि को हुआ था ।

8 . इस दिन श्री बद्रीनाथ जी के पट खुलते हैं । इन्हीं सब कारणों से इस त्यौहार को बड़ा पवित्र और महान फलदेने वाला बताया गया है।आशा करते हैं कि आप इस लेख के माध्यम से अक्षय तृतीया के त्यौहार काभरपूर
 आनंद ले पाएँगे । आपको अक्षय तृतीया की बहुत - बहुत शुभकामनाएँ ।

विभिन्न प्रांतों में अक्षय तृतीया
 बुंदेलखंड में अक्षय तृतीया से प्रारंभ होकर पूर्णिमा तक बडी धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है, जिसमें कुँवारी कन्याएँ अपने भाई, पिता तथा गाँव-घर और कुटुंब के लोगों को शगुन बाँटती हैं और गीत गाती हैं। अक्षय तृतीया
को राजस्थान में वर्षा के लिए शगुन निकाला जाता है, वर्षा की कामना की जाती है, लड़कियाँ झुंड बनाकर घर घर जाकर शगुन गीत गाती हैं और लड़के पतंग उड़ाते हैं। यहाँ इस दिन सात तरह के अन्नों से पूजा की जाती है। मालवा में नए घड़े के ऊपर ख़रबूज़ा और आम के पल्लव रख कर पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन कृषि कार्य का आरंभ किसानों को समृद्धि देता है।

संस्कृति में

इस दिन से शादी-ब्याह करने की शुरुआत हो जाती है। बड़े-बुजुर्ग अपने पुत्र-पुत्रियों के लगन का मांगलिक कार्य आरंभ कर देते हैं। अनेक स्थानों पर छोटे बच्चे भी पूरी रीति-रिवाज के साथ अपने गुड्‌डा-गुड़िया का विवाह रचाते हैं। इस प्रकार गाँवों में बच्चे सामाजिक कार्य व्यवहारों को स्वयं सीखते व आत्मसात करते हैं। कई जगह तो परिवार के साथ-साथ पूरा का पूरा गाँव भी बच्चों के द्वारा रचे गए वैवाहिक कार्यक्रमों में सम्मिलित हो जाता है। इसलिए कहा जा सकता है कि अक्षय तृतीया सामाजिक व सांस्कृतिक शिक्षा का अनूठा त्यौहार है कृषक समुदाय में इस दिन एकत्रित होकर आने वाले वर्ष के आगमन, कृषि पैदावार आदि के शगुन देखते हैं। ऐसा विश्वास है कि इस दिन जो सगुन कृषकों को मिलते हैं, वे शत-प्रतिशत सत्य होते हैं। राजपूत समुदाय में आनेवाला वर्ष सुखमय हो, इसलिए इस दिन शिकार पर जाने की परंपरा है।

अक्षय तृतीया का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीददारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं।[3] नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उदघाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है। पुराणों में लिखा है कि इस दिन पितरों को किया गया तर्पण तथा पिन्डदान अथवा किसी और प्रकार का दान, अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन गंगा स्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है। यह तिथि यदि सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किए गए दान, जप-तपका फल बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। इसके अतिरिक्त यदि यह तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती है। यह भी माना जाता है कि आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों कोक्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं, अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परंपरा भी है।

अक्षय तृतीया का मुहूर्त

1 . वैशाख मास में शुक्लपक्ष की तृतीया अगर दिन के पूर्वाह्न ( प्रथमाध ) में हो तो उस दिन यह त्यौहार मनाया जाता है ।

2 . यदि तृतीया तिथि लगातार दो दिन पूर्वाह्न में रहे तो अगले दिन यह पर्व मनाया जाता है , हालाँकि कुछ लोगों का ऐसा भी मानना है कि यह पर्व अगले दिन तभी मनाया जायेगा जब यह तिथि सूर्योदय से तीन मुहूर्त तक या इससे अधिक समय तक रहे ।


3 . तृतीया तिथि में यदि सोमवार या बुधवार के साथ रोहिणी नक्षत्र भी पड़ जाए तो बहुत श्रेष्ठ माना जाता है ।



अक्षय तृतीया के दिन कैसे करें सरल उपाय 
1 . इस दिन व्रत करने वाले को चाहिए की वह सुबह स्नानादि से शुद्ध होकर पीले वस्त्र धारण करें ।

2 . अपने घर के मंदिर में विष्णु जी को गंगाजल से शुद्ध करके तुलसी , पीले फूलों की माला या पीले पुष्प अर्पित करें ।

3  फिर धूप - अगरबत्ती , ज्योत जलाकर पीले आसन पर बैठकर विष्णु जी से सम्बंधित पाठ( विष्णु सहस्त्रनाम , विष्णु चालीसा )पढ़ने के बाद अंत में विष्णु जी की आरती पढ़ें ।

4 . साथ ही इस दिन विष्णु जी के नाम से गरीबों को खिलाना या दान देना अत्यंत पुण्य - फलदायी होता है ।

नोट : अगर पूर्ण व्रत रखना संभव न हो तो पीला मीठा हलवा , केला , पीले मीठे चावल बनाकर खा सकते हैं ।
 पौराणिक कथाओं केअनुसार इस दिन नर - नारायण , परशुराम व हयग्रीव अवतार हुए थे।इसलिए मान्यतानुसार कुछ लोग नर - नारायण , परशुराम व हयग्रीव जी के लिए जौ या गेहूँ का सत्तू , कोमल ककड़ी व भीगी चने की दाल भोग के रूप में अर्पित करते हैं ।

अक्षय तृतीया कथा

हिन्दू पुराणों के अनुसार युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से अक्षय तृतीया का महत्व जानने के लिए अपनी इच्छा व्यक्त की थी । तब भगवान श्री कृष्ण ने उनको बताया कि यह परम पुण्यमयी तिथि है । इस दिन दोपहर से पूर्व स्नान , जप , तप , होम ( यज्ञ ) , स्वाध्याय , पितृ - तर्पण , और दानादि करने वाला व्यक्ति अक्षय पुण्यफल का भागी होता है । प्राचीन काल में एक गरीब , सदाचारी तथा देवताओं में श्रद्धा रखने वाला वैश्य रहता था । वह गरीब होने के कारण बड़ा व्याकुल रहता था । उसे किसी ने इस व्रत को करने की सलाह दी । उसने इस पर्व के आने पर गंगा में स्नान कर विधिपूर्वक देवी - देवताओं की पूजा की व दान दिया । यही वैश्य अगले जन्म में कुशावती का राजा बना । अक्षय तृतीया को पूजा वदान के प्रभाव से वह बहुत धनी तथा प्रतापी बना । यह सब अक्षय तृतीया का ही पुण्य प्रभाव था ।



महालक्ष्मी अष्टकम् 

नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।
 शान्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ १ ॥

 नमस्ते गरुडारूढे कोलासुर भयंकरी । 
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ २ ॥

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरी । 
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ ३ ॥

 सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्ति मुक्ति प्रदायिनि ।
 मन्त्र पूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ ४ ॥

आयन्तरहिते देवि आद्यशक्ति महेश्वरि ।
 योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ ५ ॥

 स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे ।
 महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ ६ ॥

 पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि ।
 परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ ७ ॥ 

श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते ।
 जगतस्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ ८ ॥

 महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्ति मान्नरः । 
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥ ९ ॥ 

एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम् ।
 द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः ॥ १० ॥

 त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम् । 
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ॥ ११ ॥


Tuesday, 21 April 2020

आइए जाने नवग्रह मंत्र – वैदिक, तांत्रिक व बीज मंत्र


नवग्रह मंत्रवैदिक, तांत्रिक बीज मंत्र

ज्योतिष शास्त्र में नवग्रह मंत्र ग्रहों की शांति एवं उनका आशीष पाने के लिए होते हैं। इन मंत्र से व्यक्ति अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सकता है। साथ ही वह इन मंत्रों जाप से अपनी समस्त बाधाओं से मुक्ति पा सकता है। वैदिक शास्त्रों में कहा गया है किमन: तारयति इति मंत्र:’ अर्थात मन को तारने वाली ध्वनि ही मंत्र है। ग्रहों के वैदिक और तांत्रिक मंत्रों में असीम शक्ति समाहित होती है जिससे मानव कल्याण संभव है। परंतु इसके लिए मंत्र का उच्चारण शुद्ध रूप से होना चाहिए। यदि इसके उच्चारण में थोड़ी सी भी त्रुटि हुई तो अर्थ का अनर्थ भी हो जाता है। प्राचीन शास्त्रों में नव ग्रहों के मंत्र के महत्व को विस्तार से बताया गया है। ज्योतिष में नवग्रह मंत्र दो प्रकार के होते हैं जिन्हें वैदिक और तांत्रिक मंत्र कहा जाता है। इसके अलावा सभी नौ ग्रहों के बीज मंत्र भी होेते हैं।

वैदिक तांत्रिक मंत्र क्या होते हैं?

वेद में ग्रहों से संबंधित जिन मंत्रों का वर्णन है उन्हें वैदिक मंत्र कहा जाता है। वहीं तंत्र विद्या के ग्रंथों में ग्रहों के लिए उपयोग किए गए मन्त्रों को तांत्रिक मंत्र कहा जाता है। जबकि बीज मंत्र को मंत्रों का प्राण कहते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि किसी भी मंत्र की शक्ति उसके बीज मंत्र में समाहित होती है। इन मंत्रों के द्वारा समस्त प्रकार की बाधाओं, विकारों तथा समस्याओं का चमत्कारिक निदान किया जा सकता है।  नीचे सभी नौ ग्रहों के मंत्रों को बताया जा रहा है


|| सूर्य || 

ज्योतिष में सूर्य को ग्रहों का राजा कहा जाता है। सूर्य के आशीर्वाद से मनुष्य को सम्मान और सफलता प्राप्त होती है।सूर्य ग्रह की शांति और इसके अशुभ प्रभावों से बचने के लिए ज्योतिष में कई उपाय बताये गए हैं।
जिनमें सूर्य के वैदिक, तांत्रिक और बीज मंत्र प्रमुख हैं।

सूर्य का वैदिक मंत्र

ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च।
    हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्।।

सूर्य का तांत्रिक मंत्र

ॐ घृणि सूर्याय नमः

सूर्य का बीज मंत्र

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः

उपरोक्त मंत्रों में से किसी एक मंत्र का प्रात: काल में सात हज़ार बार जपना चाहिए।



|| चंद्र ||

ज्योतिष में चंद्र ग्रह को मन तथा सुंदरता का कारक माना गया है। कुंडली में चंद्रमा की प्रतिकूलता से जातक को मानसिक कष्ट व श्वसन से संबंधित विकार होते हैं। चंद्र ग्रह के उपाय के तहत व्यक्ति को सोमवार का व्रत धारण और चंद्र के मंत्रों का जाप करना चाहिए। इसके अलावा जातक मोती धारण भी कर लाभ सकते हैं। इससे आपकी मानसिक शक्ति बढ़ेगी और मन एकाग्र रहेगा।

चंद्र का वैदिक मंत्र

ॐ इमं देवा असपत्नं सुवध्यं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय।
     इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानां राजा।।

चंद्र का तांत्रिक मंत्र

ॐ सों सोमाय नमः

चंद्रमा का बीज मंत्र

ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः

उपरोक्त में से किसी एक मंत्र का श्रद्धा के अनुसार सायं काल में ग्यारह हज़ार बार जपें।





|| मंगल ||

ज्योतिष में मंगल को क्रूर ग्रह कहा गया है। इसके अशुभ प्रभावों से मनुष्य को रक्त संबंधी विकार होते हैं। मंगल साहस और पराक्रम का कारक है।यह जातक की मानसिक शक्ति में वृद्धि करता है। मंगल ग्रह की शांति के लिए मंगलवार का व्रत धारण करें और हनुमान चालीसा का पाठ करें। इसके अलावा मंगल से संबंधित इन मंत्रों का जाप करें-

मंगल का वैदिक मंत्र

ॐ अग्निमूर्धा दिव: ककुत्पति: पृथिव्या अयम्।
     अपां रेतां सि जिन्वति।।

मंगल का तांत्रिक मंत्र

ॐ अं अंङ्गारकाय नम:

मंगल का बीज मंत्र

ॐ  क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः

ऊपर दिए गए मंत्रों में से किसी एक मंत्र का प्रातः 8 बजे दस हज़ार बार जाप करें। विशेष परिस्थिति में इस हेतु ब्राह्मणों का भी सहयोग ले सकते हैंं।


|| बुध ||

बुध ग्रह बुद्धि एवं संचार का कारक होता है। कुंडली में बुध की कमज़ोर स्थिति त्वचा संबंधी विकार, एकाग्रता में कमी, गणित तथा लेखनी में कमजोरी जैसी परेशानी को जन्म देती है।यदि नियमित रूप से बुध के मंत्रों का जाप एवं अन्य प्रकार के उपाय किए जाएँ तो इन समस्याओं का निदान पाया जा सकता है।

बुध का वैदिक मंत्र

ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते सं सृजेथामयं च।
अस्मिन्त्सधस्‍थे अध्‍युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत।।

बुध का तांत्रिक मंत्र

ॐ बुं बुधाय नमः

बुध का बीज मंत्र

ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः

 प्रातः काल के समय ऊपर दिए गए मंत्रों में से किसी एक मंत्र का नौ हज़ार बार जाप करना चाहिए।


|| बृहस्पति ||

बृहस्पति को देवगुरुकहा जाता है। यह धर्म, ज्ञान और संतान का कारक है।यदि कुंडली में गुरु की स्थिति कमज़ोर होती है तो संतान प्राप्ति में बाधा, पेट से संबंधी विकार और मोटापा की समस्या होती है।अतः गुरु की शांति के लिए जातकों को इससे संबंधित मंत्रों का जाप करने चाहिए।

बृहस्पति का वैदिक मंत्र

ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।
     यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।।

बृहस्पति का तांत्रिक मंत्र

ॐ बृं बृहस्पतये नमः

बृहस्पति का बीज मंत्र

ॐ ज्रां ज्रीं ज्रौं  सः गुरुवे नमः

 इनमें किसी एक मंत्र का नित्य संध्याकाल में उन्नीस हज़ार बार जाप करना चाहिए।


|| शुक्र ||

शुक्र को भौतिक सुखों और कामुक विचारों का कारक कहा जाता है।कुंडली में यदि शुक्र ग्रह अपनी मजबूत स्थिति में न हो तो जातकों के आर्थिक, भौतिक एवं कामुक सुखो में कमी आ जाती है।इसके अलावा व्यक्ति को डायबिटीज की समस्या भी हो जाती है। 
शुक्र ग्रह की शांति के लिए इसके वैदिक और तांत्रिक मंत्रों का जाप करना चाहिए।

शुक्र का वैदिक मंत्र

ॐ अन्नात्परिस्त्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत् क्षत्रं पय: सोमं प्रजापति:।
      ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानं शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु।।

शुक्र का तांत्रिक मंत्र

ॐ शुं शुक्राय नमः

शुक्र का बीज मंत्र

ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः

 ऊपर दिए गए किसी एक मंत्र का सूर्योदय के समय सोलह हज़ार बार जाप करना शुभ माना जाता है।



|| शनि || 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि हमारे कर्मों के अनुसार ही फल देता है। इसलिए शनि को कर्म के भाव का स्वामी भी कहा जाता है।
कुंडली में शनि के कमजोर होने से नौकरी, व्यापार अथवा कार्यक्षेत्र में विपत्तियाँ आती हैं। ऐसी परिस्थिति में शनि ग्रह की शांति के लिए  जातकों को शनि से संबंधित मंत्रों का जाप अवश्य करना चाहिए।

शनि का वैदिक मंत्र

ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
     शं योरभि स्त्रवन्तु न:।।

शनि का तांत्रिक मंत्र

ॐ शं शनैश्चराय नमः

शनि का बीज मंत्र

ॐ खां खीं खौं शनैश्चराय नमः

 संध्याकाल में उपरोक्त मंत्रों में से किसी एक मंत्र का तेईस हज़ार बार जाप करना चाहिए।

|| राहु || 

राहु को क्रूर ग्रह की संज्ञा प्रदान की गई है। कुंडली में राहु दोष लगने से व्यक्ति को मानसिक तनाव, आर्थिक नुकसान और गृह क्लेश आदि का सामना करना पड़ता है।अपवाद परिस्थितियों को छोड़ दिया जाए तो राहु जातकों के लिए क्लेशकारी ही सिद्ध होता है। राहु ग्रह की शांति के लिए इसके वैदिक और तांत्रिक मंत्र जाप करना चाहिए।

राहु का वैदिक मंत्र

ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृध: सखा।
    कया शचिष्ठया वृता।।
   
राहु का तांत्रिक मंत्र

ॐ रां राहवे नमः

राहु का बीज मंत्र

ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः

 ऊपर दिए गए किसी एक मंत्र का नित्य रात्रि के समय अट्ठारह हज़ार बार जाप करना चाहिए|



|| केतु || 

केतु को तर्क, कल्पना और मानसिक गुणों आदि का कारक कहा जाता है। यदि कुंडली में केतु की स्थिति ठीक न हो तो जातकों को इसके कष्टकारी परिणाम मिलते हैं। इसकी प्रतिकूलता से जातकों को दाद-खाज तथा कुष्ट जैसे रोग होते हैं। केतु के वैदिक और तांत्रिक मंत्र के जाप तथा अन्य उपाय से आप इन कष्टों से मुक्ति पा सकते हैं।

केतु का वैदिक मंत्र

ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे।
    सुमुषद्भिरजायथा:।।

केतु का तांत्रिक मंत्र

ॐ कें केतवे नमः

केतु का बीज मंत्र

ॐ प्रां प्रीं प्रौ केतवे नमः

उपरोक्त में से किसी एक मंत्र का रात्रि के समय सत्रह हज़ार बार जाप करें।

                                                              जुगल व्यास