आइए जाने अक्षय तृतीया के पूजा मुहूर्त,महत्व,सरल उपाय और कथा
अक्षय तृतीया की तारीख व मुहूर्त आइए जानते हैं कि अक्षय तृतीया वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षय तृतीया या आखा तीज कहते हैं । यह सनातन धर्मियों का प्रधान त्यौहार है । इस दिन दिए हुए दान और किये हुए स्नान , यज्ञ , जप आदि सभी कर्मों का फल अनन्त और अक्षय ( जिसका क्षय या नाश न हो ) होता है , इसलिए इस त्यौहार का नाम अक्षय तृतीया रखा गया है ।
अक्षय तृतीया महत्व
1 . अक्षय तृतीया का दिन साल के उन साढ़े तीन मुहूर्त में से एक है जो सबसे शुभ माने जाते हैं । इस दिन अधिकांश शुभ कार्य किए जा सकते हैं ।
2 . इस दिन गंगा स्नान करने का भी बड़ा भारी माहात्म्य बताया गया है । जो मनुष्य इस दिन गंगा स्नान करता है, वह निश्चय ही सारे पापों से मुक्त हो जाता है ।
3 . इस दिन पितृ श्राद्ध करने का भी विधान है । जौ , गेहूँ , चने , सत्तू , दही - चावल , दूध से बने पदार्थ आदि सामग्री का दान अपने पितरों ( पूर्वजों ) के नाम से करके किसी ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए ।
4 . इस दिन किसी तीर्थ स्थान पर अपने पितरों के नाम से श्राद्ध व तर्पण करना बहुत शुभ होता है ।
5 . कुछ लोग यह भी मानते हैं कि सोना ख़रीदना इस दिन शुभ होता है ।
6 . इसी तिथि को परशुराम व हयग्रीव अवतार हुए थे ।
7 . त्रेतायुग का प्रांरभ भी इसी तिथि को हुआ था ।
8 . इस दिन श्री बद्रीनाथ जी के पट खुलते हैं । इन्हीं सब कारणों से इस त्यौहार को बड़ा पवित्र और महान फलदेने वाला बताया गया है।आशा करते हैं कि आप इस लेख के माध्यम से अक्षय तृतीया के त्यौहार काभरपूर
आनंद ले पाएँगे । आपको अक्षय तृतीया की बहुत - बहुत शुभकामनाएँ ।
अक्षय तृतीया का मुहूर्त
1 . वैशाख मास में शुक्लपक्ष की तृतीया अगर दिन के पूर्वाह्न ( प्रथमाध ) में हो तो उस दिन यह त्यौहार मनाया जाता है ।
2 . यदि तृतीया तिथि लगातार दो दिन पूर्वाह्न में रहे तो अगले दिन यह पर्व मनाया जाता है , हालाँकि कुछ लोगों का ऐसा भी मानना है कि यह पर्व अगले दिन तभी मनाया जायेगा जब यह तिथि सूर्योदय से तीन मुहूर्त तक या इससे अधिक समय तक रहे ।
3 . तृतीया तिथि में यदि सोमवार या बुधवार के साथ रोहिणी नक्षत्र भी पड़ जाए तो बहुत श्रेष्ठ माना जाता है ।
अक्षय तृतीया के दिन कैसे करें सरल उपाय
1 . इस दिन व्रत करने वाले को चाहिए की वह सुबह स्नानादि से शुद्ध होकर पीले वस्त्र धारण करें ।
2 . अपने घर के मंदिर में विष्णु जी को गंगाजल से शुद्ध करके तुलसी , पीले फूलों की माला या पीले पुष्प अर्पित करें ।
3 फिर धूप - अगरबत्ती , ज्योत जलाकर पीले आसन पर बैठकर विष्णु जी से सम्बंधित पाठ( विष्णु सहस्त्रनाम , विष्णु चालीसा )पढ़ने के बाद अंत में विष्णु जी की आरती पढ़ें ।
4 . साथ ही इस दिन विष्णु जी के नाम से गरीबों को खिलाना या दान देना अत्यंत पुण्य - फलदायी होता है ।
नोट : अगर पूर्ण व्रत रखना संभव न हो तो पीला मीठा हलवा , केला , पीले मीठे चावल बनाकर खा सकते हैं ।
पौराणिक कथाओं केअनुसार इस दिन नर - नारायण , परशुराम व हयग्रीव अवतार हुए थे।इसलिए मान्यतानुसार कुछ लोग नर - नारायण , परशुराम व हयग्रीव जी के लिए जौ या गेहूँ का सत्तू , कोमल ककड़ी व भीगी चने की दाल भोग के रूप में अर्पित करते हैं ।
अक्षय तृतीया कथा
हिन्दू पुराणों के अनुसार युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से अक्षय तृतीया का महत्व जानने के लिए अपनी इच्छा व्यक्त की थी । तब भगवान श्री कृष्ण ने उनको बताया कि यह परम पुण्यमयी तिथि है । इस दिन दोपहर से पूर्व स्नान , जप , तप , होम ( यज्ञ ) , स्वाध्याय , पितृ - तर्पण , और दानादि करने वाला व्यक्ति अक्षय पुण्यफल का भागी होता है । प्राचीन काल में एक गरीब , सदाचारी तथा देवताओं में श्रद्धा रखने वाला वैश्य रहता था । वह गरीब होने के कारण बड़ा व्याकुल रहता था । उसे किसी ने इस व्रत को करने की सलाह दी । उसने इस पर्व के आने पर गंगा में स्नान कर विधिपूर्वक देवी - देवताओं की पूजा की व दान दिया । यही वैश्य अगले जन्म में कुशावती का राजा बना । अक्षय तृतीया को पूजा वदान के प्रभाव से वह बहुत धनी तथा प्रतापी बना । यह सब अक्षय तृतीया का ही पुण्य प्रभाव था ।
1 . अक्षय तृतीया का दिन साल के उन साढ़े तीन मुहूर्त में से एक है जो सबसे शुभ माने जाते हैं । इस दिन अधिकांश शुभ कार्य किए जा सकते हैं ।
2 . इस दिन गंगा स्नान करने का भी बड़ा भारी माहात्म्य बताया गया है । जो मनुष्य इस दिन गंगा स्नान करता है, वह निश्चय ही सारे पापों से मुक्त हो जाता है ।
3 . इस दिन पितृ श्राद्ध करने का भी विधान है । जौ , गेहूँ , चने , सत्तू , दही - चावल , दूध से बने पदार्थ आदि सामग्री का दान अपने पितरों ( पूर्वजों ) के नाम से करके किसी ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए ।
4 . इस दिन किसी तीर्थ स्थान पर अपने पितरों के नाम से श्राद्ध व तर्पण करना बहुत शुभ होता है ।
5 . कुछ लोग यह भी मानते हैं कि सोना ख़रीदना इस दिन शुभ होता है ।
6 . इसी तिथि को परशुराम व हयग्रीव अवतार हुए थे ।
7 . त्रेतायुग का प्रांरभ भी इसी तिथि को हुआ था ।
8 . इस दिन श्री बद्रीनाथ जी के पट खुलते हैं । इन्हीं सब कारणों से इस त्यौहार को बड़ा पवित्र और महान फलदेने वाला बताया गया है।आशा करते हैं कि आप इस लेख के माध्यम से अक्षय तृतीया के त्यौहार काभरपूर
आनंद ले पाएँगे । आपको अक्षय तृतीया की बहुत - बहुत शुभकामनाएँ ।
विभिन्न प्रांतों में अक्षय तृतीया
बुंदेलखंड में अक्षय तृतीया से प्रारंभ होकर पूर्णिमा तक बडी धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है, जिसमें कुँवारी कन्याएँ अपने भाई, पिता तथा गाँव-घर और कुटुंब के लोगों को शगुन बाँटती हैं और गीत गाती हैं। अक्षय तृतीया
को राजस्थान में वर्षा के लिए शगुन निकाला जाता है, वर्षा की कामना की जाती है, लड़कियाँ झुंड बनाकर घर घर जाकर शगुन गीत गाती हैं और लड़के पतंग उड़ाते हैं। यहाँ इस दिन सात तरह के अन्नों से पूजा की जाती है। मालवा में नए घड़े के ऊपर ख़रबूज़ा और आम के पल्लव रख कर पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन कृषि कार्य का आरंभ किसानों को समृद्धि देता है।
को राजस्थान में वर्षा के लिए शगुन निकाला जाता है, वर्षा की कामना की जाती है, लड़कियाँ झुंड बनाकर घर घर जाकर शगुन गीत गाती हैं और लड़के पतंग उड़ाते हैं। यहाँ इस दिन सात तरह के अन्नों से पूजा की जाती है। मालवा में नए घड़े के ऊपर ख़रबूज़ा और आम के पल्लव रख कर पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन कृषि कार्य का आरंभ किसानों को समृद्धि देता है।
संस्कृति में
इस दिन से शादी-ब्याह करने की शुरुआत हो जाती है। बड़े-बुजुर्ग अपने पुत्र-पुत्रियों के लगन का मांगलिक कार्य आरंभ कर देते हैं। अनेक स्थानों पर छोटे बच्चे भी पूरी रीति-रिवाज के साथ अपने गुड्डा-गुड़िया का विवाह रचाते हैं। इस प्रकार गाँवों में बच्चे सामाजिक कार्य व्यवहारों को स्वयं सीखते व आत्मसात करते हैं। कई जगह तो परिवार के साथ-साथ पूरा का पूरा गाँव भी बच्चों के द्वारा रचे गए वैवाहिक कार्यक्रमों में सम्मिलित हो जाता है। इसलिए कहा जा सकता है कि अक्षय तृतीया सामाजिक व सांस्कृतिक शिक्षा का अनूठा त्यौहार है कृषक समुदाय में इस दिन एकत्रित होकर आने वाले वर्ष के आगमन, कृषि पैदावार आदि के शगुन देखते हैं। ऐसा विश्वास है कि इस दिन जो सगुन कृषकों को मिलते हैं, वे शत-प्रतिशत सत्य होते हैं। राजपूत समुदाय में आनेवाला वर्ष सुखमय हो, इसलिए इस दिन शिकार पर जाने की परंपरा है।
अक्षय तृतीया का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीददारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं।[3] नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उदघाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है। पुराणों में लिखा है कि इस दिन पितरों को किया गया तर्पण तथा पिन्डदान अथवा किसी और प्रकार का दान, अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन गंगा स्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है। यह तिथि यदि सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किए गए दान, जप-तपका फल बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। इसके अतिरिक्त यदि यह तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती है। यह भी माना जाता है कि आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों कोक्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं, अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परंपरा भी है।
अक्षय तृतीया का मुहूर्त
1 . वैशाख मास में शुक्लपक्ष की तृतीया अगर दिन के पूर्वाह्न ( प्रथमाध ) में हो तो उस दिन यह त्यौहार मनाया जाता है ।
2 . यदि तृतीया तिथि लगातार दो दिन पूर्वाह्न में रहे तो अगले दिन यह पर्व मनाया जाता है , हालाँकि कुछ लोगों का ऐसा भी मानना है कि यह पर्व अगले दिन तभी मनाया जायेगा जब यह तिथि सूर्योदय से तीन मुहूर्त तक या इससे अधिक समय तक रहे ।
3 . तृतीया तिथि में यदि सोमवार या बुधवार के साथ रोहिणी नक्षत्र भी पड़ जाए तो बहुत श्रेष्ठ माना जाता है ।
अक्षय तृतीया के दिन कैसे करें सरल उपाय
1 . इस दिन व्रत करने वाले को चाहिए की वह सुबह स्नानादि से शुद्ध होकर पीले वस्त्र धारण करें ।
2 . अपने घर के मंदिर में विष्णु जी को गंगाजल से शुद्ध करके तुलसी , पीले फूलों की माला या पीले पुष्प अर्पित करें ।
3 फिर धूप - अगरबत्ती , ज्योत जलाकर पीले आसन पर बैठकर विष्णु जी से सम्बंधित पाठ( विष्णु सहस्त्रनाम , विष्णु चालीसा )पढ़ने के बाद अंत में विष्णु जी की आरती पढ़ें ।
4 . साथ ही इस दिन विष्णु जी के नाम से गरीबों को खिलाना या दान देना अत्यंत पुण्य - फलदायी होता है ।
नोट : अगर पूर्ण व्रत रखना संभव न हो तो पीला मीठा हलवा , केला , पीले मीठे चावल बनाकर खा सकते हैं ।
पौराणिक कथाओं केअनुसार इस दिन नर - नारायण , परशुराम व हयग्रीव अवतार हुए थे।इसलिए मान्यतानुसार कुछ लोग नर - नारायण , परशुराम व हयग्रीव जी के लिए जौ या गेहूँ का सत्तू , कोमल ककड़ी व भीगी चने की दाल भोग के रूप में अर्पित करते हैं ।
अक्षय तृतीया कथा
हिन्दू पुराणों के अनुसार युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से अक्षय तृतीया का महत्व जानने के लिए अपनी इच्छा व्यक्त की थी । तब भगवान श्री कृष्ण ने उनको बताया कि यह परम पुण्यमयी तिथि है । इस दिन दोपहर से पूर्व स्नान , जप , तप , होम ( यज्ञ ) , स्वाध्याय , पितृ - तर्पण , और दानादि करने वाला व्यक्ति अक्षय पुण्यफल का भागी होता है । प्राचीन काल में एक गरीब , सदाचारी तथा देवताओं में श्रद्धा रखने वाला वैश्य रहता था । वह गरीब होने के कारण बड़ा व्याकुल रहता था । उसे किसी ने इस व्रत को करने की सलाह दी । उसने इस पर्व के आने पर गंगा में स्नान कर विधिपूर्वक देवी - देवताओं की पूजा की व दान दिया । यही वैश्य अगले जन्म में कुशावती का राजा बना । अक्षय तृतीया को पूजा वदान के प्रभाव से वह बहुत धनी तथा प्रतापी बना । यह सब अक्षय तृतीया का ही पुण्य प्रभाव था ।
महालक्ष्मी अष्टकम्
नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।
शान्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ १ ॥
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुर भयंकरी ।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ २ ॥
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरी ।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ ३ ॥
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्ति मुक्ति प्रदायिनि ।
मन्त्र पूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ ४ ॥
आयन्तरहिते देवि आद्यशक्ति महेश्वरि ।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ ५ ॥
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे ।
महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ ६ ॥
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि ।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ ७ ॥
श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते ।
जगतस्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ ८ ॥
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्ति मान्नरः ।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥ ९ ॥
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम् ।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः ॥ १० ॥
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम् ।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ॥ ११ ॥
नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।
शान्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ १ ॥
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुर भयंकरी ।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ २ ॥
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरी ।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ ३ ॥
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्ति मुक्ति प्रदायिनि ।
मन्त्र पूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ ४ ॥
आयन्तरहिते देवि आद्यशक्ति महेश्वरि ।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ ५ ॥
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे ।
महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ ६ ॥
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि ।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ ७ ॥
श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते ।
जगतस्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥ ८ ॥
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्ति मान्नरः ।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥ ९ ॥
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम् ।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः ॥ १० ॥
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम् ।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ॥ ११ ॥
जुगल व्यास
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